श्री भुवनेश्वरी महाविद्या इस श्रष्टि की केन्द्रीय सर्वोच्च नियामक एवं क्रियात्मक सत्ता मूल शक्ति की प्रकृति (गुण) स्वरूपी प्रधान सोलह कलाओं में से चतुर्थ कला, प्रवृत्ति (स्वभाव) स्वरूपी प्रधान सोलह योगिनियों में से चतुर्थ योगिनी, तुरीय आदि प्रधान सोलह अवस्थाओं में से चतुर्थ अवस्था एवं चतु: आयाम से युक्त क्रिया रूपी सोलह विद्याओं में से चतुर्थ विद्या के रूप में सृजित हुई है !
यह महाविद्या इस लोक में सनातन धर्म व संस्कृति से प्रेरित सम्प्रदायों में दस महाविद्याओं में श्री भुवनेश्वरी महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं । जबकि इस लोक व अन्य लोकों में सनातन धर्म से प्रेरित सम्प्रदायों के अतिरिक्त अन्य धर्म व सम्प्रदायों में उनकी अपनी भाषा, संस्कृति व मत के अनुसार अन्य अनेक नामों से जानी जाती हैं ।
माँ भुवनेश्वरी दस महाविद्या की चौथी देवी है, आद्या शक्ति, भुवनेश्वरी स्वरूप में भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं, सखी हैं । यह देवी नियंत्रक भी हैं तथा भूल करने वालों के लिए दंड का विधान भी तय करती हैं, इनके भुजा में व्याप्त अंकुश, नियंत्रक का प्रतीक हैं ।
जो विश्व को वमन करने हेतु वामा, शिवमय होने से ज्येष्ठा तथा कर्म नियंत्रक, जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री, प्रकृति का निरूपण करने से मूल-प्रकृति कही जाती हैं । भगवान शिव के वाम भाग को देवी भुवनेश्वरी के रूप में जाना जाता हैं तथा सदा शिव के सर्वेश्वर होने की योग्यता इन्हीं के संग होने से प्राप्त हैं । भुवनेश्वरी मतलब जिनकी सत्ता तीनो लोक पर होती है ऐसी ऐश्वर्य सम्पन्न देवी. साधना हर प्रकार के सुख मे वृद्धि करने वाली होती है !
भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है । ब्रम्हांड कि निर्मिती के वक्त सूर्य नारायण अकेलेही अपनी शक्ती का प्रदर्शन कर रहे थे इसी को लेकर ब्रम्हा, विष्णू और महेश मे अपने इस निर्माण कार्य को (सूर्य की उत्पत्ती)लेकर शक्ति प्रदर्शन मे बहस छिड गयी. हर किसी का दावा होने लगा कि सर्वशक्तिमान कौन है. इसिलिये आदिशक्ति ने पृथ्वी का रूप लेकर उन तीनोंका गर्व हरण किया. क्योंकी भूमाता सिर्फ शांत थी ऐसे नही उसके गर्भ मे पानी भी था जो सुर्य की शक्ती को शांत कर सकता था. इसिलिये भुवनेश्वरी माता का सीना आधा खुला है, क्योंकी सृष्टी का सर्जन निरंतर हो रहा है उसका भरण पोषण भी निरंतर हो रहा है. इसी कारण माँ का वक्षस्थल विस्तृत एवं हमेशा भरा हुआ रहता है !
आदि शक्ति भुवनेश्वरी मां का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरुण हैं । भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है । इस महाविद्या की आराधना से सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है ।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त जीवित तथा अजीवित वस्तुओं का निर्माण मूल पञ्च तत्वों से ही होता हैं । १. आकाश, २. वायु ३. पृथ्वी ४. अग्नि ५. जल, मूल-तत्व हैं जिनसे समस्त दिखने वाली तत्वों का निर्माण होता हैं । देवता, राक्षस, वेद, प्रकृति, महासागर, पर्वत, जीव, जंतु, समस्त वनस्पति इत्यादि समस्त भौतिक जगत इन्हीं पंच-तत्वों से सम्बद्ध हैं । पञ्च-तत्वों का निरूपण एवं रचना इन्हीं भुवनेश्वरी देवी द्वारा ही हुआ हैं तथा वह इन समस्त तत्वों की ईश्वरी या स्वामिनी हैं ।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के निर्वाह, पालन पोषण का दाईत्व इन्हीं देवी भुवनेश्वरी का हैं, सात करोड़ महा-मंत्र सर्वदा इनकी आराधना करने में तत्पर रहते हैं । देवी भक्तों को समस्त प्रकार कि सिद्धियाँ तथा अभय प्रदान करती हैं ।
यह देवी, ललित के नाम से भी विख्यात हैं, परन्तु यह देवी ललित, श्री विद्या-ललित नहीं हैं । भगवान शिव द्वारा दो शक्तियों का नाम ललिता रखा गया हैं, एक ‘पूर्वाम्नाय तथा दूसरी ऊर्ध्वाम्नाय’ द्वारा । ललिता जब त्रिपुरसुंदरी के साथ होती हैं तो वह श्री विद्या-ललिता के नाम से जानी जाती हैं इनका सम्बन्ध श्री कुल से हैं । ललिता जब भुवनेश्वरी के साथ होती हैं तो भुवनेश्वरी-ललित के नाम से जानी जाती हैं ।
मुख्य नाम : भुवनेश्वरी ।
अन्य नाम : मूल प्रकृति, सर्वेश्वरी या सर्वेशी, सर्वरूपा, विश्वरूपा, जगत-धात्री इत्यादि ।
भैरव : त्र्यंबक ।
कुल : काली कुल ।
दिशा : पश्चिम ।
स्वभाव : सौम्य , राजसी गुण सम्पन्न ।
कार्य : सम्पूर्ण जगत का निर्माण तथा सञ्चालन ।
शारीरिक वर्ण : सहस्रों उदित सूर्य के प्रकाश के समान कान्तिमयी ।
श्री भुवनेश्वरी महाविद्या ध्यान :-
उद्यद्दिनद्युतिमिन्दु किरीटां तुंगकुचां नयनवययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुश पाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥
जाप मंत्र :-
(सभी शक्तियों के बीजमन्त्रों के लिए अत्यन्त गोपनीयता का विधान होता है इसी कारण से सभी शक्तियों के बीजमन्त्र एवं वैदिक मन्त्र मूल ग्रन्थों में गूढ़कृत लिखे गए हैं, गोपनीयता का विधान होने के कारण बीजमन्त्रों को कहीं भी सार्वजनिक लिखा या बोला नहीं जा सकता है, बीजमन्त्र को केवल दीक्षा विधान के द्वारा गुरुमुख से प्राप्त किया जा सकता है ! इसलिए यहां पर इन महाविद्या के वैदिक व बीजमन्त्र को नहीं लिखा गया है !)
शाबर मन्त्र :-
सत नमो आदेश,
गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी,
ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत
ज्योत मध्ये परम ज्योत
परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न,
ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी ।
बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी
दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे,
बालकाना बल दे जोगी को अमर काया ।
चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का,
दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार ।
योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता ।
इतना भुवनेश्वरी जाप सम्पूर्ण भया,
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ||