यहां पर सज्जनों द्वारा सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्न व उनके उत्तर लिखे गए हैं !
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प्रश्न 1 :- मैं श्रीविद्या में पहले से ही दीक्षित हूं, तो क्या मैं पुनः श्रीविद्या दीक्षा ले सकता हूं ?
उत्तर :- श्रीमान जी ! किसी भी मन्त्र की दीक्षा केवल एक बार ही ली जा सकती है, कोई न्यूनता आ जाने पर दूसरी बार तो केवल उस मन्त्र से तत्वाभिषिक्त अथवा रसाभिषिक्त ही हुआ जा सकता है अथवा परिमार्जन ही केवल किया जा सकता है, जिसे अपने ही गुरु अथवा अन्य गुरु के द्वारा संपन्न किया जा सकता है ! पृथक-पृथक गुरुजनों से पृथक-पृथक मन्त्रों की दीक्षाएं लेकर साधनाएं संपन्न की जा सकती हैं, किन्तु किसी भी मन्त्र की किसी भी गुरुजन से दो बार दीक्षा नहीं ली जा सकती है, अपितु उसी विषय, साधना कुल व संप्रदाय के अन्य मन्त्र से दीक्षा अवश्य ली जा सकती है !
यदि किसी भी मन्त्र की दो बार दीक्षा ले ली गई तो जिस प्रकार +++=- हो जाता है ठीक उसी प्रकार गुरुत्व से युक्त दो समान शक्तियां आपस में टकराकर समाप्त हो जाती हैं तथा वह मन्त्र ओर दीक्षा भी निष्फल हो जाते हैं ! और इस प्रकार से बिना विचार किये “दीक्षा देने वाला गुरु और दीक्षा लेने वाला शिष्य” ये दोनों ही गुरुत्व का अतिक्रमण व अपमान करने के अपराधी व शिव शाप से दूषित होकर अहैतुक ही अज्ञात दैविक कष्टों को भोगते हैं !
अतः किसी भी मन्त्र की एक बार से अधिक बार दीक्षा नहीं ली जा सकती है, जबकि साधना में सफल या असफल होने पर अनेक बार साधना अवश्य की जा सकती है अर्थात एक ही साधना को अनेक बार करने के लिए हर बार दीक्षा नहीं ली जा सकती है !
प्रश्न 2 :- मैं किसी अन्य सम्प्रदाय में पहले से ही दीक्षित हूं, तो क्या मैं अन्य गुरु से श्रीविद्या अथवा अन्य कोई दीक्षा ले सकता हूं ?
उत्तर :- श्रीमान जी ! सम्प्रदाय से दीक्षित होना पृथक विषय है और किसी साधना विशेष की लिए दीक्षा लेना पृथक विषय होता है ! कोई सज्जन चाहे किसी भी पंथ या संप्रदाय से दीक्षित हो, वह अपने उद्देश्य के लिए किसी भी अन्य पंथ या संप्रदाय के गुरुजनों से साधना हेतु मंत्र दीक्षा ग्रहण कर साधनाएं संपन्न कर सकता है, इसमें कोई दोष नहीं है !
प्रश्न 3 :- क्या मैं गुरु जी से दीक्षा में प्राप्त हुए मन्त्र का वाचिक अथवा उपांशु जप कर सकता हूं ?
उत्तर :- श्रीमान जी गुरु द्वारा प्रदत्त मन्त्र व दीक्षा में प्राप्त मन्त्र का कभी भी उपांशु अथवा वाचिक उच्चारण करके जप नहीं किया जा सकता है, ओर अपने गुरु के अतिरिक्त अपनी साधना की विधि, अनुभव व मन्त्रों को कभी भी किसी के सम्मुख कहना या लिखना नहीं चाहिए, यदि आपने किसी मन्त्र को किसी अपात्र के सम्मुख या सभा (5 या इससे अधिक व्यक्ति) में उच्चारित कर दिया, और गुरु द्वारा प्रदत्त साधना विधि व मन्त्र की गोपनीयता को किसी भी प्रकार से भंग कर दिया तो निश्चित ही वह मन्त्र आपके अपने लिए कुछ समय या सदैव के लिए भी कीलित हो सकता है ! केवल यज्ञ के समय मन्त्रों का उच्चारण किया जा सकता है, किन्तु गुरु प्रदत्त मन्त्र का उच्चारण तब भी मानसिक ही किया जायेगा और स्वाहाकार को ही मुख से उच्चारण करके बोला जा सकता है ! अधिकतर साधक सतत साधना तो करते रहते हैं लेकिन इस घोर त्रुटि के कारण ही उनको साधना का कोई परिणाम नहीं मिलता है !
प्रश्न 4 :- मैं दश महाविद्या साधना सम्पन्न करना चाहता हूं, क्या मुझे दश महाविद्या साधना की दीक्षा मिल सकती है ?
बहुत से सज्जन दश महाविद्याओं की समग्र साधना करने हेतु प्रयासरत रहते हैं, व व्यवसायिक प्रचारकों द्वारा अपने अर्थोपार्जन हेतु प्रकाशित साहित्यों को पढ़ – पढ़ कर वास्तविक जानकारी के अभाव में इसी भ्रान्ति के वशीभूत होकर वह अपने बहुमूल्य जीवन के बहुमूल्य समय, धन, मानसिक शान्ति, आस्था व श्रद्धा का स्वयं ही हनन कर बैठते हैं !
दश महाविद्याओं की समग्र दीक्षा तो केवल आदिदेव महादेव शिव ही प्रदान कर सकते हैं, उनके अतिरिक्त इस भूमण्डल पर ऐसा अन्य कोई नहीं कर सकता है ! दश महाविद्याओं की दीक्षा लेना या देना तो बहुत दूर की बात है, क्योंकि पांच महाविद्या साधना से आगे तो जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भी नहीं कर पाए थे ! कोई भी सक्षम साधक किसी एक कुल की चार महाविद्याओं की साधना को ही बड़ी मुश्किल से कर पाता है, जिसके बाद अन्य साधना करने की न तो आवश्यकता ही रह जाती है और न ही उपयोगिता ! तो फिर दश महाविद्याओं की समग्र दीक्षा कहाँ से और कैसे मिल सकती है ???
दश महाविद्याओं की केवल उपासना की जा सकती है जिसके लिए दीक्षा विधान की आवश्यकता नहीं होती है केवल पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा पद्धति ही पर्याप्त होती है, अपवाद स्वरूप कुछ लोग दश महाविद्याओं की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा पद्धति से उपासना या पुस्तकों से दश महाविद्याओं के (दीक्षा हीन) मन्त्र ग्रहण कर उन मन्त्रों के पुरश्चरण कर अथवा सीधे पुस्तक से ही अध्ययन कर (स्वयं दीक्षा हीन होते हुए भी) अपने शिष्यों को दश महाविद्याओं के दीक्षा विधान पूर्ण कराते हैं, जो कि किसी भी साधना के साधना विधान, शास्त्र व सिद्धान्त के अनुरूप नहीं है, ओर स्वयं गुरु से दीक्षा लेकर साधना पूर्ण किये बिना पुरश्चरण किये हुए अथवा नहीं किये हुए मन्त्रों की अपने शिष्यों को दीक्षा देना भर्त्सनीय अपराध है !
और साथ ही उपासना और साधना में बहुत अधिक भेद होता है, ओर मन्त्र सिद्ध करने व मन्त्र के देवता को सिद्ध करने में भी बहुत अधिक भेद होता है ! किन्तु कभी भी विधिवत दश महाविद्याओं की समग्र साधना पूर्ण नहीं की जा सकती है, केवल समग्र उपासना ही की जा सकती है, आदिकाल से यही परम्परा चली आ रही है !
कोई भी सक्षम साधक केवल अपने द्वारा साधित किसी एक, दो, तीन अथवा पूर्णाभिषेक में दीक्षित होकर अपने द्वारा साधित किसी एक कुल की चार महाविद्याओं की साधना को पूर्ण करके अधिकाधिक एक या दो अन्य महाविद्याओं की साधना ही कर सकता है, अपने द्वारा साधित अधिकाधिक पांच या छः महाविद्याओं तक की ही दीक्षा प्रदान कर सकता है !
“श्री ज्योतिर्मणि पीठ” से भी केवल श्रीकुल की चार महाविद्याओं षोडशी, त्रिपुरसुन्दरी, कमला (राजराजेश्वरी), ललिता महाविद्या तथा तीन अन्य महाविद्याओं कामाक्षी, त्रिपुरभैरवी व भुवनेश्वरी महाविद्या की दीक्षाएं व साधनायें ही संपन्न कराई जाती हैं !
प्रश्न 5 :- श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा/साधना कब सम्पन्न कर सकता हूं ?
उत्तर :- श्रीमान जी हमारे यहाँ से दीक्षा व साधना शिविर हेतु समय व तिथि सौरमण्डलीय सकारात्मक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किये जाते हैं, जो कि साधकों की साधना में सहयोत्मक व सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करते हुए साधकों को सहजता के साथ साधना सफल होने में सहायक होते हैं ! अतः हमारे यहाँ पर हमारे द्वारा निर्धारित तिथि के अतिरिक्त दीक्षा नहीं दी जाती है !
हमारे यहां से प्रदान की जाने वाली दीक्षाओं व साधनाओं की तिथियों की जानकारी हमारी वेबसाईट http://www.shripeeth.in की Menu में “दीक्षाएं” व “साधना शिविर” की Submenu में उपलब्ध हैं ! अतः आप अपनी अभीष्ट दीक्षा/साधना की तिथी की जानकारी हमारी वेबसाईट की Menu के “दीक्षाएं” व “साधना शिविर” की Submenu में उपलब्ध अपनी अभीष्ट दीक्षा/साधना के पृष्ठ के शीर्ष पर लिखी हुई प्राप्त कर सकते हैं !
प्रश्न 6 :- क्या मैं घर में बैठे हुए ही फोन, चित्र, वीडियो या इंटरनेट के द्वारा ऑनलाईन दीक्षा/साधना प्राप्त कर सकता हूं ?
उत्तर :- श्रीमान जी यदि आप इतने सक्षम हैं कि आप फोन, चित्र, वीडियो या इंटरनेट के द्वारा ऑनलाईन जल व भोजन आदि ग्रहण कर अपनी भूख प्यास मिटा सकते हैं, तो निश्चित ही आपकी यह अभिलाषा भी पूर्ण हो जाएगी ! इसके लिए आपको फोन, चित्र, वीडियो या इंटरनेट के द्वारा ऑनलाईन जल व भोजन आदि ग्रहण कर अपनी भूख प्यास मिटा सकने में सक्षम गुरु को खोजना होगा, वही आपकी यह अभिलाषा पूर्ण कर सकेगा !
किन्तु हमारे यहां से आपकी यह अभिलाषा पूर्ण नहीं हो सकती है, हम केवल वैदिक व शास्त्रीय सिद्धान्तों के द्वारा दीक्षा/साधना सम्पन्न करा सकते हैं जिसके लिए आपको स्वयं उपस्थित होना होता है !
प्रश्न 7 :- मैं श्रीविद्या साधना करना चाहता हूँ, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- शश्रीमान जी इस सम्बन्ध में आप हमारी वेबसाइट पर श्रीविद्या साधना के लिए “श्रीविद्या दीक्षा” व “श्रीविद्या साधना” पर दी गई सम्पूर्ण जानकारी का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने का कष्ट करें, श्रीविद्या दीक्षा व साधना के व्यय व अनिवार्यताओं की जानकारी यहाँ पर उपलब्ध है !
अनिवार्यतः यह भी ध्यान रखें कि वहां पर इस साधना से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु इस साधना से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर इस साधना से उस लाभ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, यदि आप इस साधना के अधिकार क्षेत्र से पृथक लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
- निःशुल्क श्रीविद्या दीक्षा हेतु यहां क्लिक करें !
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- निःशुल्क इकतालीस दिवसीय सम्पूर्ण श्रीविद्या साधना हेतु यहां क्लिक करें !
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प्रश्न 8 :- मैं महाविद्या साधना सम्पन्न करना चाहता हूँ, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
श्रीमान जी हमारे यहां से प्रदान की जाने वाली महाविद्या साधनाओं की जानकारी हमारी वेबसाइट पर निम्नलिखित उपलब्ध है, इन साधना पद्धतियों के व्यय व अनिवार्यताओं की जानकारी यहाँ पर उपलब्ध है, कृपया नीचे दी गई लिंकों पर क्लिक कर उस पृष्ठ पर दी गई सम्पूर्ण जानकारियों का अन्त तक ध्यानपूर्वक अवलोकन करने का कष्ट करें !
अनिवार्यतः यह भी ध्यान रखें कि वहां पर इन प्रत्येक साधनाओं से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु जिस साधना से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर उस साधना से उस लाभ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, यदि आप किसी साधना के अधिकार क्षेत्र से पृथक लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
कृपया यहां पर लिखी महाविद्या साधनाओं के अतिरिक्त महाविद्या साधना के लिए हमसे प्रश्नोत्तर करने का कष्ट न करें !- मन्त्र जप द्वारा निःशुल्क श्री षोडशी महाविद्या साधना हेतु यहां क्लिक करें !
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- मन्त्र जप द्वारा निःशुल्क श्री त्रिपुरसुन्दरी महाविद्या साधना हेतु यहां क्लिक करें !
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- मन्त्र जप द्वारा निःशुल्क श्री ललिता महात्रिपुरसुन्दरी महाविद्या साधना हेतु यहां क्लिक करें !
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प्रश्न 9 :- मैं यक्षिणी साधना सिद्ध करना चाहता हूँ, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- श्रीमान जी इस सम्बन्ध में हमारी वेबसाइट पर निम्नलिखित तीन साधना पद्धतियों व एक विशेष तीव्र प्रत्यक्ष अनुष्ठान के व्यय व अनिवार्यताओं सहित सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर उपलब्ध है, कृपया नीचे दी गई लिंकों पर क्लिक कर उस पृष्ठ पर दी गई सम्पूर्ण जानकारियों का अन्त तक ध्यानपूर्वक अवलोकन करने का कष्ट करें !
अनिवार्यतः यह भी ध्यान रखें कि वहां पर इस साधना से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु इस साधना से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर इस साधना से उस लाभ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, यदि आप इस साधना के अधिकार क्षेत्र से पृथक लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
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प्रश्न 10 :- मैं अप्सरा साधना सिद्ध करना चाहता हूँ, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- श्रीमान जी इस सम्बन्ध में हमारी वेबसाइट पर निम्नलिखित तीन साधना पद्धतियों व एक विशेष तीव्र प्रत्यक्ष अनुष्ठान के व्यय व अनिवार्यताओं सहित सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर उपलब्ध है, कृपया नीचे दी गई लिंकों पर क्लिक कर उस पृष्ठ पर दी गई सम्पूर्ण जानकारियों का अन्त तक ध्यानपूर्वक अवलोकन करने का कष्ट करें !
अनिवार्यतः यह भी ध्यान रखें कि वहां पर इस साधना से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु इस साधना से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर इस साधना से उस लाभ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, यदि आप इस साधना के अधिकार क्षेत्र से पृथक लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
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प्रश्न 11 :- मैं गन्धर्व साधना सिद्ध करना चाहता हूँ, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- श्रीमान जी इस सम्बन्ध में हमारी वेबसाइट पर निम्नलिखित तीन साधना पद्धतियों व एक विशेष तीव्र प्रत्यक्ष अनुष्ठान के व्यय व अनिवार्यताओं सहित सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पर उपलब्ध है, कृपया नीचे दी गई लिंकों पर क्लिक कर उस पृष्ठ पर दी गई सम्पूर्ण जानकारियों का अन्त तक ध्यानपूर्वक अवलोकन करने का कष्ट करें !
अनिवार्यतः यह भी ध्यान रखें कि वहां पर इस साधना से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु इस साधना से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर इस साधना से उस लाभ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, यदि आप इस साधना के अधिकार क्षेत्र से पृथक लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
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प्रश्न 12 :- मैं साधना करना चाहता हूँ, किन्तु मैं साधना के नियम व योग्यता का पालन करने में सक्षम नहीं हूँ, मैं साधना को कैसे सम्पन्न करूं ?
उत्तर :- श्रीमान जी प्रत्येक साधना को विधिवत् सम्पन्न करने के लिए कुछ अनिवार्य शारीरिक व मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता होती है, जो कि हमारे यहां से प्रदान की जाने वाली प्रत्येक दीक्षा/साधना के विवरण के साथ "अनिवार्य योग्यता" के अन्तर्गत लिखी गई होती हैं, तथा इन अनिवार्य शारीरिक व मानसिक योग्यताओं के बिना आप साधना में लाख प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो सकते हैं ! अतः श्री ज्योतिर्मणि पीठ से आपको उस साधना को सम्पन्न करने हेतु आवश्यक योग्यता में पूर्ण पाए जाने पर ही दीक्षा प्राप्त हो सकती है, अन्यथा नहीं !
यदि आप किसी साधना को करना चाहते हैं तो आप हमारे यहां से संचालित होने वाले "निःशुल्क साधना पूर्व प्रशिक्षण शिविर" में सम्मिलित होकर विधिवत् प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वयं को अपनी साधना के योग्य बना सकते हैं, हमारा नि:शुल्क साधनात्मक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आपके इस प्रयास में निश्चित ही आपकी शत प्रतिशत सहायता करेगा । उसके बाद आप निर्विघ्न होकर आपनी साधना सम्पन्न कर सकते हैं ! निःशुल्क साधना पूर्व प्रशिक्षण शिविर में सम्मिलित होने के लिए आप यहाँ क्लिक करें तथा वहां पर ध्यानपूर्वक अध्ययन करके निःशुल्क प्रशिक्षण हेतु पन्जिकरण करें !
प्रश्न 13 :- मैं गुप्तगायत्री साधना सम्पन्न करना चाहता हूं, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- श्रीमान जी गुप्तगायत्री साधना केवल निवृत्त सन्यासी अथवा निवृत्त सन्यासी जैसा निवृत्त जीवन जीने वाला व्यक्ति ही सम्पन्न कर सकता है, तथा इसकी दीक्षा की योग्यता के लिए भी अत्यन्त कठोर मानक होते हैं, जिनको गुरु अपने शिष्य को बताये बिना ही परोक्ष रूप से अनेक वर्षों तक आंकलन करता है !
और यह दीक्षा कभी भी मांगने या आग्रह करने से प्राप्त नहीं होती है, इस विद्या में सक्षम गुरु अपने शिष्य की योग्यता का आंकलन करके स्वयं केवल स्वेच्छा से ही प्रदान करता है !
अतः आप स्वयं जिस योग्य हों केवल उसका ही चयन करने का कष्ट करें ! अन्यथा अनावश्यक अभिलाषाएं न उपजने दें !
प्रश्न 14 :- मैं दीक्षा लिए बिना साधना करना चाहता हूं, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- श्रीमान जी इस विषय में आपको अवगत कराना चाहेंगे कि सबसे पहले आपको दीक्षा की अनिवार्यता को समझना चाहिए इसको आप हमारी वेबसाइट के दीक्षा क्या होती है ? और साधना के लिए दीक्षा क्यों ली जाती है ? पर पढ़ सकते हैं !
किसी भी साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए उसके जाग्रत मन्त्र व साधना विधान की आवश्यकता होती है जो कि निश्चित ही किसी अनुभवी से ही प्राप्त की जाती है, और जाग्रत मन्त्र केवल दीक्षा के द्वारा उस विषय के किसी अनुभवी व्यक्ति से ही प्राप्त होता है, इसलिए प्रत्येक साधना के लिए सक्षम गुरु से उसकी विधिवत् दीक्षा प्राप्त कर विधिवत उसके जाग्रत मन्त्र व साधना विधान व नियमों को प्राप्त कर उनका अनुपालन सुनिश्चित करना अनिवार्य होता है !
प्रश्न 15 :- मैं समस्याओं से ग्रस्त हूं, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें कि मुझे क्या करना चाहिए ?
उत्तर :- श्रीमान जी हमारे यहां से ज्योतिषीय उपाय व अन्य सुझावों की सुविधा उपलब्ध नहीं है, हमारे यहां से केवल दीक्षा/साधनाएं ही सम्पन्न कराई जाती हैं जिनके बारे में आप हमारी वेबसाइट के Menu में "दीक्षाएं" व "साधना शिविर" की Submenu में अध्ययन कर सकते हैं, वहां पर प्रत्येक साधना के साथ उस साधना से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है ! वहां पर यदि कोई साधना आपको अपने अनुकूल लगती है तो आप उस साधना के विषय में ध्यानपूर्वक अध्ययन कर अपनी आवश्यकता व क्षमता के अनुसार साधना का चयन कर सकते हैं !
इसके अतिरिक्त आप अपने हित के उद्देश्य से अनुष्ठान सम्पन्न करा सकते हैं, जिसकी जानकारी आप हमारी वेबसाइट के Menu में "विशेष अनुष्ठान" की Submenu में प्राप्त कर सकते हैं, वहां पर प्रत्येक अनुष्ठान के साथ उस अनुष्ठान से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है ! वहां पर यदि कोई अनुष्ठान आपको अपने अनुकूल लगता है तो आप उस अनुष्ठान के विषय में ध्यानपूर्वक अध्ययन कर अपनी आवश्यकता व क्षमता के अनुसार अनुष्ठान का चयन कर अनुष्ठान सम्पन्न करा सकते हैं !
अनिवार्यतः यह भी ध्यान रखें कि वहां पर प्रत्येक साधना/अनुष्ठान के साथ उस साधना/अनुष्ठान से जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु किसी साधना/अनुष्ठान से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर उस साधना/अनुष्ठान से उस लाभ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, यदि आप किसी साधना/अनुष्ठान के अधिकार क्षेत्र से पृथक लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
प्रश्न 16 :- दीक्षा/साधना का शुल्क अधिक होने के कारण मैं साधना में सम्मिलित होने में असमर्थ हूं, कृपया मेरी सहायता करें ?
उत्तर :- श्रीमान जी हमारे द्वारा दीक्षा/साधना पंजिकरण हेतु साधकों से जो धन प्राप्त किया जाता है वह साधकों को दीक्षा व साधना के समय के संस्कारों, पूजन व यज्ञ में लगने वाली अनिवार्य सामग्री व उनके रहन सहन की व्यवस्थाओं के निमित्त मात्र होता है, पंजिकरण शुल्क के रूप में लिखे गए कुल व्यय में बाजार में सामग्रियों के मूल्य के अनुसार लिखी गयी कुल धनराशी में 5% Payment Gateway के शुल्क एवं मात्र 101/- रु दीक्षा/साधना की दक्षिणा को जोड़कर लिखा जाता है, तथा यह पंजिकरण शुल्क बाजार में सामग्रियों के मूल्य के उतार चढ़ाव के अनुसार सदैव बदलता रहता है ! इसके अतिरिक्त कोई धन नहीं लिया जाता है !
हमारे द्वारा दीक्षा/साधना पंजिकरण की सूचना में स्पष्ट रूप से दो विकल्प लिखे गए होते हैं, जिनमें से विकल्प 1 :- में आपको अपनी दीक्षा/साधना की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने की स्वतंत्रता होती है, तथा विकल्प 2 :- में ही पन्जिकरण करके शुल्क का भुगतान करने के लिए कहा जाता है ! इसके साथ ही विकल्प 1 एवं विकल्प 2 के मध्य में स्पष्ट शब्दों में यह लिखा गया है कि "(सभी सज्जनों से विनम्र आग्रह है कि व्यय के लिए "विकल्प 1" का चयन करने का प्रयत्न करें ।) " इसपर आप विकल्प 1 का चयन करें अथवा विकल्प 2 में त्रुटियां खोजें यह आपकी व्यक्तिगत समस्या है जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा !
अतः जिन सज्जनों को इससे आपत्ति है कृपया वह ऑनलाईन पंजिकरण न करके अपनी दीक्षा व साधना के समय के संस्कारों, पूजन, यज्ञ में लगने वाली गुणवत्ता युक्त शुद्ध व पूर्ण सामग्री स्वयं लेकर आने व अपने रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने हेतु स्वतन्त्र हैं !
प्रश्न 17 :- मैं साधना करना चाहता हूं, कृपया मुझे साधना की विधि व मन्त्र बताने का कष्ट करें ?
उत्तर :- श्रीमान जी साधना विधान गोपनीय होता है जिसे केवल दीक्षा लेने वाले व्यक्ति को दीक्षा लेने के समय पर ही दीक्षा देने वाले गुरु द्वारा बताया जा सकता है ! अतः आप जिस साधना को करना चाहते हैं, सबसे पहले उस साधना को सम्पन्न कर चुके गुरु को खोजकर उससे उस साधना के लिए दीक्षा प्राप्त करें, दीक्षा के समय पर आपको साधना की सम्पूर्ण विधि, मन्त्र व मन्त्र का शुद्ध उच्चारण विधिवत् बताया जाता है ! इसके उपरान्त आप साधना विधान का पालन करते हुए निर्विघ्न होकर अपनी साधना सम्पन्न कर सकते हैं !
प्रत्येक साधना को करने के लिए उस साधना की दीक्षा लेना अनिवार्य होता है, क्योंकि दीक्षा के समय पर दीक्षा देने वाले गुरु द्वारा साधक के अन्दर जिस साधना को वह करना चाहता है उस साधना सम्बन्धी शक्ति को जागृत कर उससे सम्बन्धित मन्त्र व साधना विधान आदि प्रदान किया जाता है !
प्रश्न 18 :- मैं योग्य गुरु को प्राप्त करना चाहता हूं, कृपया मेरी सहायता करने का कष्ट करें ?
उत्तर :- श्रीमान जी सम्भवतः आपका यह प्रश्न ही गलत हो सकता है, क्योंकि आजकल लोग "गुरु" को कम और एक ऐसे "नौकर" को अधिक खोजते हैं जो नीति, नियम व सिद्धान्तों की अनदेखी करके आपके मनोनुकूल रहकर आपकी भौतिक इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में आपकी सहायता व मार्गदर्शन कर सके, या आपके कार्यों जो संवैधानिक व सैद्धान्तिक हों या न हों बस उन्हें कैसे भी पूरा करके आपकी "गुलामी" कर सके, और आप समाज में उसको "गुरु" शब्द से सम्बोधित कर सकें !
जबकि गुरु का कार्य शिष्य के मनोनुकूल कार्य न करके शिष्य के उज्जवल भविष्य का निर्माण करना होता है, क्योंकि मनोनुकूल कार्य तो "भस्मासुर" की भांति भविष्य को भी मिटा सकते हैं ! और गुरु केवल वह होता है जो शिष्य को अनैतिक व असैद्धान्तिक मार्गों से हटाकर केवल सिद्धान्त, न्याय व नीतियों द्वारा उसके आत्मिक, भौतिक व आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग दिखा कर शिष्य के उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सके !
और आप खोजेंगे भी तो क्या ? आपमें स्वयं को पहचानने की क्षमता तो है नहीं, तो दुसरे को क्या पहचान लोगे ? "एक कुएं का मेंढक केवल दुसरे मेंढक को ही तो पहचान पायेगा" जबकि गुरु अथाह है, तो कैसे पहचानोगे अथाह को ? और जिसको आप पहचान गए, तो समझो कि आप और वह एक ही स्तर पर हैं, आपको उससे और कहीं अधिक गहरे की आवश्यकता है !
प्रत्येक जीव अपने लिए योग्य गुरु को ढूंढ़ता है, इसके विपरीत स्वयं में शिष्य होने की योग्यता को खोजेंगे तो आपको आपके उद्देशय में शीघ्र ही सफलता मिलेगी , गुरु रूपी तोपवान दीक्षा रूपी चिंगारी से केवल योग्य शिष्य रूपी उत्तम श्रेणी की बारूद को ही दहका कर विराट बना सकता है, जबकि अयोग्य व कुटिल शिष्य रूपी घटिया श्रेणी की बारूद का तो दहकती हुई भट्ठी में डाल देने पर भी कुछ नहीं हो सकेगा !
इसलिए जितना अथाह ज्ञान आप अन्य लोगों को बांटते हैं उसको स्वयं के आचरण में दृढ़तापूर्वक सम्मिलित करके अपनी योग्यता की वृद्धि करना चाहिए न कि गुरु की योग्यता का आंकलन, गुरु तो गुरु ही है आपके द्वारा आंकलन करने से आपको कुछ नहीं मिल सकता है ! आपकी योग्यता अवश्य उसे आप तक ले आएगी, अथवा आपको उस तक ले जाएगी ! जिस प्रकार गहराई की और जल स्वयं बहकर आ जाता है उसी प्रकार आपकी योग्यता व सुपात्रता की गहराई गुरु रूपी जल को स्वयं ही अपनी और खींच लेगी ! गुरु तो स्वयं प्रत्येक समय लुटने के लिए तैयार बैठे होते हैं, जिन्हें केवल शिष्य की योग्यता, विश्वास व समर्पण ही लूट सकता है, अन्यथा कोई नहीं !!! किन्तु समर्पण व विश्वासहीन, अहंकार व कुटिलता से परिपूर्ण जीव को शिष्य तो क्या शिष्य के जैसा हो जाना भी बहुत दूर की बात होती है !
अतः आप स्वयं के अन्दर योग्य शिष्य को खोज लें तो गुरु स्वयं ही मिल जायेगा, अथवा आप स्वयं ही योग्य शिष्य बनें तो गुरु स्वयं ही आपको खोज लेगा ! किन्तु जब तक आप मनोनुकूल कार्य करने में आपकी सहायता व मार्गदर्शन करने वाला "गुलाम" खोजेंगे तब तक तो "नहले को दहला" ही मिलेगा !!!
प्रश्न 19 :- मैंने निःशुल्क साधना पूर्व प्रशिक्षण हेतु पंजिकरण किया था, किन्तु मुझे आमन्त्रण क्यों नहीं मिला है ?
उत्तर :- श्रीमान जी हमारी वेबसाइट के निःशुल्क साधना पूर्व प्रशिक्षण शिविर के पंजिकरण प्रपत्र के पृष्ठ पर प्रपत्र के नीचे स्पष्ट शब्दों में यह लिखा हुआ है :-
- साधकों द्वारा प्रेषित की गई जानकारियों के आधार पर योग्य साधकों को निःशुल्क साधना पूर्व प्रशिक्षण शिविर की तिथी से सात दिन पहले ईमेल द्वारा सूचित कर आमन्त्रित किया जायेगा !
- आप जिस साधना के पूर्व प्रशिक्षण हेतु पंजिकरण कर रहे हैं, उस 'साधना का नाम' व 'साधना करने का उद्देश्य' स्पष्ट नहीं लिखने पर पंजिकरण स्वतः ही निरस्त हो जाऐगा !
- एक ही तिथि के लिए एक से अधिक बार पंजिकरण करने पर पंजिकरण स्वतः ही निरस्त हो जाऐगा !
- फॉर्म में मांगी गई पूरी जानकारी व साधक की स्पष्ट फोटो के बिना पंजिकरण स्वतः ही निरस्त हो जाऐगा !
यदि आपने प्रपत्र भरते हुए इसमें से कोई त्रुटि की होगी तो निश्चित ही आपको आमन्त्रित नहीं किया जा सकेगा, ओर यदि आपने प्रपत्र को सही भरा है तो आपको निःशुल्क साधना पूर्व प्रशिक्षण शिविर की तिथी से सात दिन पूर्व तक धैर्य रखना चाहिए, व शिविर की तिथी से सात दिन पहले अपनी ईमेल के Inbox व Spam में जांच कर लेनी चाहिए !
इसके साथ ही ऐसे सज्जन जो प्रशिक्षण हेतु बार बार पंजिकरण तो करते हैं किन्तु आमन्त्रण भेजने के उपरान्त प्रशिक्षण हेतु उपस्थित नहीं होते हैं, ऐसे सज्जन हमारा बहुमूल्य समय अनावश्यक ही व्यय कराते हैं इसलिए ऐसे सज्जनों को दो बार आमन्त्रण दिए जाने पर प्रशिक्षण शिविर में उपस्थित नहीं होने पर उनको उनके नाम, ईमेल, मोबाईल नं व चित्र सहित प्रतिबन्धित (Block) कर दिया जाता है !
व कुछ ऐसे सज्जन हैं जो प्रशिक्षण हेतु बार बार पंजिकरण करते हैं किन्तु प्रत्येक बार उनके विवरण भिन्न - भिन्न होने के कारण उनको सन्दिग्ध की श्रेणी में चिन्हित कर उनको उनके नाम, ईमेल, मोबाईल नं व चित्र सहित प्रतिबन्धित (Block) कर दिया जाता है !
अतः प्रतिबन्धित (Block) हुए सज्जनों के सन्देश/ईमेल हमारे पास नहीं पहुंचते हैं, जिस कारण हम उनको कोई उत्तर नहीं दे सकते है ! यदि आप भी प्रतिबन्धित (Block) हुए हैं तो यह आपके लिए बहुत ही अच्छा है, हमारी ओर से आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं ! ओर यदि प्रतिबन्धित नहीं हुए हैं तो कृपया धैर्य रखें व उत्तर की प्रतीक्षा करें !
प्रश्न 20 :- मैं साधना करने से पूर्व किसी साधक की साधना के प्रभाव को देखना या परखना चाहता हूं !
उत्तर :- इसके लिए आपको किसी जादूगर अथवा ऐन्द्रजालिक व सम्मोहन पर आधारित विद्याओं के जानकार व्यक्ति का आश्रय लेना चाहिए क्योंकि आध्यात्मिक साधनाओं ओर ऐन्द्रजालिक व सम्मोहन आदि पर आधारित विद्याओं व साधनाओं में बहुत अधिक अन्तर होता है !
ऐन्द्रजालिक व सम्मोहन पर आधारित साधनाओं के द्वारा विभिन्न प्रकार के विस्मयकारी प्रभाव उत्पन्न कर किसी को भी विस्मय के छलयुक्त प्रभाव में लिया जा सकता है ! कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव में सहज ही आ सकता है ! जैसे कि :-
- कोई जादूगर अपनी आजीविका के लिए एक दिन में तीन बार किसी व्यक्ति के टुकड़े – टुकड़े करके उसको वापस जीवित करके दिखा सकता है ! (आध्यात्म विज्ञान के सर्वोपरि शिखर भगवन शिव ने वास्तविक जीवन में ऐसा केवल दो बार ही किया है, पहला “गणपति जी को गज का शीश” लगाकर व दूसरा “दक्ष प्रजापति जी को अज का शीश” लगाकर ! इन दोनों का अपना शीश तो उन्होंने भी न जोड़ा, किन्तु जादूगर अवश्य जोड़कर दिखा सकता है !)
- कोई व्यक्ति अपनी आजीविका के लिए राख, मिट्टी आदि से रुद्राक्ष, खाने की वस्तु आदि बनाकर किसी को देकर उसके बदले में कुछ धन लेकर आगे बढ़ जाता है !
क्योंकि ऐसा करना उनकी अपनी आजीविका का साधन है, ओर वह केवल उनके लिए ही आवश्यक है ! किसी आध्यात्ममार्गी को ऐसे "ढोंग पाखण्ड" की न तो कोई आवश्यकता होती है ओर न ही वह ऐसे "ढोंग पाखण्ड" में दक्ष ही होता है !
जबकि आध्यात्मिक साधनाएं भौतिक आजीविका नहीं बल्कि यह पुर्णतः केवल अन्तरतम की तृप्ति व पुष्टि का मार्ग हैं, आध्यात्मिक साधनाएं पूर्ण रूप से पराभौतिक विषय होने के कारण आध्यात्मिक साधनाओं के प्रभाव को भौतिक स्तर पर अनुभव नहीं किया जा सकता है, न ही इनको भौतिक स्तर पर देखा या परखा जा सकता है ! आध्यात्मिक साधनाओं के प्रभाव को केवल स्वयं के आन्तरिक स्तर पर स्वयं ही देखा, परखा व अनुभूत किया जा सकता है !
यदि आपने कोई तथाकथित चमत्कार देख भी लिया तो ऐसा क्या है आपके पास जिससे आप यह परख या प्रमाणित कर लेंगे कि यह ऐन्द्रजालिक व सम्मोहन आदि पर आधारित विस्मय न होकर यह वास्तविक शक्ति या साधना का ही प्रभाव था ???
जिस दिन आपके भीतर इतना देखने, समझने व परखने की क्षमता आ जायेगी उस दिन आपको ऐसे "कौतुक" केवल मनोरंजन का साधन मात्र दिखाई देंगे, जो कि "इन्द्रजाल" जैसे बड़े ग्रन्थ में बनाए ही मनोरंजन के लिए हैं !
आध्यात्मिक साधनाओं का तो एक ही सबसे बड़ा चमत्कार है, ओर वो यह है कि "निवृत आकाश ओर सागर की गहराई को स्वयं वहां जाकर देखो ओर नापो" ! क्योंकि जिसने वास्तव में आध्यात्म की जितनी भी गहराई को जान व समझ लिया होता है, वह उसके वास्तविक स्वरूप का बखान तक भी नहीं कर सकता है, चमत्कार दिखाकर "अपना उल्लु सीधा करना" अथवा "चमत्कारप्रिय मानसिक रोगियों" व "ढोंग-पाखण्ड में आस्था रखने वाले" एवं "अंधकार को उजाला समझने वाले उल्लुओं" को सन्तुष्ट करना तो बहुत दूर की बात है !
जहां चमत्कार है उसका सीधा सा अर्थ है कि चमत्कार दिखाने वाले व्यक्ति को अपनी आजीविका अथवा आवश्यकता पूर्ति के लिए कुछ आवश्यकता है, इसलिए वह चमत्कार दिखाकर किसी व्यक्ति या समाज को अपने प्रभाव में लेकर उससे अपना हित साधना चाहता है, अथवा इस माध्यम से वह समाज में कहीं पर अपने लिए स्थान बनाने या अपना वर्चश्व विस्तार करने के प्रयास में प्रयत्नशील है, न कि आध्यात्म के "पहले भी पायदान पर " !
जिन सज्जनों की सन्तुष्टि ही चमत्कार देखकर हो सकती है वह किसी आध्यात्ममार्गी, सन्यासी से दूर ही रहें, नहीं तो वह "घर का रहेगा न घाट का" ओर "माया मिलेगी ना राम" ! क्योंकि "चमत्कार व ढोंग-पाखण्ड प्रिय" लोग कभी-कभी अपनी सन्तुष्टि व पुष्टि के लिए किसी आध्यात्ममार्गी, सन्यासी के प्रति "पैशाचिक नीचता" की भी सभी सीमाएं लांघ जाते हैं, इसके बाद उनका जो हश्र होता है वह व्यक्त किए जाने की सीमा से परे होता है !
अतः आध्यात्म व आध्यात्म विज्ञान की शक्तियां स्वयं के भीतर ही हैं, किसी सक्षम मार्गदर्शक गुरु का आश्रय लेकर उनके निर्देशानुसार उन शक्तियों को स्वयं में ही खोजें व अनुभव करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी ! चमत्कार के चक्कर में अति करने के परिणाम स्वरूप कहीं किसी "तन्त्रज्ञ द्वारा ताड़न, पीड़न, उच्चाटन" अथवा किसी "सरलहृदय आध्यात्ममार्गी, सन्यासी" को पीड़ा देकर "देवकोप" के भागी भी बन सकते हो !