श्री अष्टलक्ष्मी साधना सभी प्रकार के धन, धान्य, सुख, समृद्धि, पुत्र, ऐश्वर्य, भोग, विद्या, आरोग्यता व वाहन आदि की प्राप्ति हेतु की जाती है !
इस साधना में भौतिक ऐश्वर्यों की पृथक पृथक आठ स्वामिनी शक्तियों की साधना की जाती है जिन्हें इस जगत में अष्टलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है, तथा उनके नाम व प्रभाव इस प्रकार हैं :-
1 :- आद्या लक्ष्मी :- समस्त प्रकार की तुष्टि – पुष्टि व शान्ति प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
2 :- धान्य लक्ष्मी :- समस्त प्रकार के अन्न, वस्त्र, भूमि आदि प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
3 :- धैर्य लक्ष्मी :- समस्त प्रकार की आन्तरिक व मानसिक क्षमताओं तथा धैर्य व धर्म आदि प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
4 :- गज लक्ष्मी :- समस्त प्रकार के हाथी, घोड़ा, रथ या आधुनिक वाहन आदि प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
5 :- सन्तान लक्ष्मी :- वंश वृद्धि व उत्तम गुणों से युक्त सन्तान प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
6 :- विजय लक्ष्मी :- समस्त प्रकार की अवस्थाओं व रोग आदि पर विजय प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
7 :- विद्या लक्ष्मी :- समस्त प्रकार के ज्ञान, विज्ञान, विद्या आदि प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
8 :- धन लक्ष्मी :- समस्त प्रकार के रत्न, स्वर्ण, धन, राज्यसुख आदि ऐश्वर्य प्राप्त होने के मार्ग प्रशस्त करने वाली शक्ति !
इस श्री अष्टलक्ष्मी साधना को मुख्य रूप से शारदीय नवरात्र, वासंतीय नवरात्र अथवा दीपावली के पांचरात्र काल में गुरु से विधिवत दीक्षित होकर संपन्न किया जाता है ! क्योंकि सौरमण्डलीय व ऋतुओं के विशेष प्रभाव के कारण यह समय समस्त भौतिक धन, धान्य, सौभाग्य व ऐश्वर्य वर्द्धक साधनाओं की सिद्धि के लिए सर्वोत्तम समय होता है, और इसमें भी शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन से विजयदशमी तक, और कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी से दीपावली की रात्री तक का समय सर्वोत्तम समय होता है !
अतः उपरोक्त प्रकार के धन, धान्य, सुख, समृद्धि, पुत्र, ऐश्वर्य, भोग, विद्या, आरोग्यता व वाहन आदि की अभिलाषा रखने वाले सज्जनों के लिए यह स्वर्णिम अवसर है कि वह अपने अपने गुरुजन से श्री अष्टलक्ष्मी साधना हेतु शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन अथवा कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन विधिवत् श्री अष्टलक्ष्मी दीक्षा ग्रहण करें व श्री अष्टलक्ष्मी साधना विधान प्राप्त कर साधना विधान के अनुसार ही शारदीय नवरात्र अथवा दीपावली के पांचरात्र काल में यह भौतिक सौभाग्य, ऐश्वर्य, समृद्धि प्रदायिनी साधना अवश्य संपन्न करनी चाहिए !