।। कुण्डलिनी जागरण साधना सत्र के प्रारम्भ होने की आगामी तिथी दिनांक 07/01/2022 है, तथा इस साधना हेतु पन्जिकरण करने कि अन्तिम तिथी दिनांक 29/12/2021 है !।।
कुण्डलिनी जागरण (प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठम एवं सप्तम चरण) प्रत्येक चरण पांच दिवसीय !
इस साधना के लाभ :- इस साधना के प्रभाव से व्यक्ति की ऊर्जा मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र की ओर गमन करना प्रारम्भ करती है, और निरन्तर साधनारत रहकर विधिवत् साधना सम्पन्न कर लेने से कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है तथा इस साधना के परिणाम से व्यक्ति में दैहिक, दैविक व भौतिक क्षमताओं की अतिशय वृद्धि होती है जिससे व्यक्ति इसकी ऊर्जा को अपने शरीर में निहित शारीरिक, मानसिक एवं परामानसिक शक्तियों के लिये उपयोग करने व आध्यात्म विज्ञान की उच्च से उच्च साधना को सहजता से करने के योग्य हो जाता है । इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं ।
अनिवार्य योग्यताएं :- इस साधना शिविर में निम्नलिखित नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता रखने वाले सभी पुरुष साधक सम्मिलित हो सकते हैं !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक बिना हिले डुले एक ही स्थिर आसन में बैठने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक मन की पूर्ण एकाग्रता से रहने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से ब्रहमचर्य से युक्त रहने में सक्षम हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से सात्विक भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से मार्गदर्शक गुरु के प्रति आस्थावान हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से उत्तम प्राण ऊर्जा (उत्साह) की भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से परमार्थ की भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में साधना की पूर्णता हेतु गुरु द्वारा प्रदत्त अनिवार्य निर्देशों व साधना के नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो !
- साधनाकाल के लिए अनिवार्य व्यवहारिक नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो ! व्यवहारिक नियमों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें !
साधना अवधि :- नियमानुसार यह साधना पांच (5) दिन की साधना के पृथक – पृथक पांच से सात चरणों में पृथक – पृथक समय पर विधिवत् सम्पन्न किया जाता है ! उपरोक्त “योग्यता” के लिए लिखे गए निर्देशों व साधना के नियमों में समझौतावादी, स्वेच्छाचारी साधक के लिए यह साधना अवधि अनन्त काल तक की भी हो सकती है !
उपस्थिति व पंजिकरण :- साधना हेतु साधना प्रारम्भ होने की तिथि से न्यूनतम सात दिवस पूर्व तक किया गया पंजिकरण ही मान्य होगा, तथा साधना की तिथि से एक दिवस पूर्व दोपहर तक श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर उपस्थित होना अनिवार्य है ।
अनिवार्य :- पहचान व पते की पुष्टि के लिए किसी भी वैद्य अभिलेख की एक छायाप्रति व मूलप्रति तथा लाल, पीले, श्वेत, गुलाबी या बसंती रंग की एक धोती, एक गर्म चादर व लेखन सामग्री साथ में लाना अनिवार्य है !
इस साधना में सम्मिलित होने के लिए उपरोक्त लिखी गई इस साधना हेतु सभी “अनिवार्य योग्यताओं” को प्राप्त करने के लिए हमारे यहां से संचालित निःशुल्क साधनापूर्व प्रशिक्षण शिविर को उत्तीर्ण करना अनिवार्य है, अन्यथा दीक्षा/साधना से वंचित रखा जाता है ।
श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा व साधना हेतु “पहले आओ-पहले पाओ” के आधार पर स्थान दिया जाता है, तथा निर्धारित संख्या पूर्ण होते ही नवीन पंजिकरण बंद कर दिए जाते हैं !
श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा महिलाओं को दीक्षा/साधना प्रदान नहीं की जाती है, यह हमारा व्यक्तिगत विषय है, अतः इस पर कोई प्रश्न न करें ।