श्री नन्दादेवी राजजात मार्ग में वैदिनी बुग्याल से 15 किमी दूर बगुवावासा से आगे 17500 फीट पर स्थित है रहस्यमयी रूपकुण्ड। यहां आज भी सैकड़ों साल पुराने पुराने मानव कंकाल बिखरे पड़े हैं। ऐसी मान्यता है कि राजा यशधवल की राजजात मां नन्दा देवी के प्रकोप के इसी रूपकुण्ड में बर्फीले तूफान में दफन हो गई थी, इसीलिये इसे रूद्रकुण्ड भी कहा जाता है।
इस रहस्यमयी कुण्ड को देखने हर साल देश विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं। रहस्यमयी रूपकुण्ड में बिखरे हुये मानव कंकाल हमें आज भी आश्चर्यचकित कर देती हैं। जब आज रूपकुण्ड पहुंचना इतना कठिन लगता है तो उस समय जब वाण गांव तक बर्फ से ढ़का रहता होगा, तब लोग कैसे यात्रा करते होंगे, तब कैसे रूपकुण्ड ज्यूरांगली को पार करते होंगे, जबकि उस समय वहां बारह फीट तक बर्फ रहती होगी….. हम तो कल्पना भी नहीं कर सकते।
रूपकुण्ड से आगे ज्यूरांगलीधार की कठिन चढ़ाई है पहले इसे वाण के लोग पार कराते थे और यात्रियों से इसका कर लेते थे अब यह प्रथा समाप्त हो गई है। ज्यूरांगलीधार से त्रिशूली व नन्दाघुंघुटी एकदम सामने दिखाई देते हैं। इसके एक ओर रूपकुण्ड बगुवावासा की विशाल घाटी है तो दूसरी ओर शिलासमुद्र की रहस्यमयी घाटी।
यहां तक हर यात्री नहीं पहुंच पाता है और जो रूपकुण्ड ज्यूरांगली को पार कर लेता है वह अपने को सौभाग्यशाली समझता है। रूपकुण्ड के कंकालों को यात्री अपने साथ निशानी के तौर पर ले जा रहे हैं। जिससे रूपकुण्ड का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यही हमारी पौराणिक धरोहर है,
अतः सभी यात्रियों से अपील है कि रूपकुण्ड के संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान देने की कृपा करें।