विशेष चेतावनी :- श्री ललिता सहस्रनाम एवं श्री ललिता सहस्रनामावली का पाठ अपने गुरु अथवा पुरोहित की आज्ञा व निर्देशानुसार उनसे प्राप्त विधि द्वारा ही सम्पन्न करना चाहिए होता है । श्री ललिता सहस्रनाम एवं श्री ललिता सहस्रनामावली का पाठ करने में कोई त्रुटि हो जाने से कोई नकारात्मक दुष्परिणाम भी प्राप्त हो सकता है । जिसके आप स्वयं ही उत्तरदायी होते हैं ।
श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का श्रद्धा भाव से किया गया पाठ अद्भुत शक्तियां प्रदान करता है ! यह सहस्रनाम श्रृष्टि, ब्रह्माण्ड व तन्त्र के असंख्य अत्यन्त गोपनीय रहस्यमय सूत्रों से परिपूर्ण है, जिन गुप्त सूत्रों को केवल स्वयं साधना करके अथवा गुरु द्वारा जाना जा सकता है !
ललिता सहस्रनाम ब्रह्माण्ड पुराण का अंश है। ब्रह्माण्ड पुराण में इसका शीर्षक ‘ललितोपाख्यान’ के रूप में है। ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तर खण्ड में भगवान हयग्रीव और महामुनि अगस्त्य के संवाद के रूप में इनका विवेचन मिलता है । ये अनेक नामों से संबोधित की जाती हैं : जैसे- परमज्योति, परमधाम, परात्परा, सर्वान्तर्यामिनी, मूलविग्रहा, कल्पनारहिता, त्रयी, तत्त्वमयी, विश्वमाता, व्योमकेशी, शाश्वती, त्रिपुरा, ज्ञानमुद्रा, ज्ञानगम्या, चक्रराजनिलया, शिवा, शिवशक्त्यैक्यरूपिणी। इन्हीं नामों से छान्द्र, कठ, जाबाल, केन, ईश, देवी और भावना आदि उपनिषदों में भी संबोधित किया गया है ।
श्री ललिता सहस्रनाम को सर्वप्रथम भगवान हयग्रीव (महाविष्णु के अवतार ) ने ऋषि अगस्त्य को सिखाया था ।
ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार ललिता सहस्त्रनाम एक ऐसा पवित्र स्तोत्र है जिसमें देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी (आकाश, भूमि व पाताल रुपी तीनों लोकों की सुंदर सर्वोच्च ऊर्जा) के 1000 अनोखे नाम शामिल हैं| ज्ञान के सर्वोच्च देव भगवान हयग्रीव ने इस पवित्र स्तोत्र का ज्ञान ऋषि अगस्त्य को प्रदान किया था|
श्री विद्या पूजा प्रणाली के अनुसार देवी ललिता का निवास बिन्दु (श्री चक्र या महा मेरु का बीज चक्र) में है जो कि कुल लौकिक ऊर्जा के उपरिकेंद्र का प्रतीक है तथा जो सभी जीवों में बाहर विस्तारित होता है | प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सर्वोच्च देवी के प्रतीकात्मक रूप महा मेरु ( त्रि-आयामी, श्री चक्र यंत्र का ज्यामितीय रूप) की पूजा करने से स्वास्थ्य, धन, समृद्धि, समग्र सफलता, मानसिक शांति, घरेलू सुख आदि प्राप्त हो सकता है तथा आपके आसपास स्थित नकारात्मक ऊर्जा का शमन होकर इच्छाओं की पूर्ति हो सकती है |
ललिता आत्मा की उल्लासपूर्ण, क्रियाशील और प्रकाशमय अभिव्यक्ति है । मुक्त चेतना जिसमे कोई राग द्वेष नहीं, जो आत्मस्थित है वो स्वतः ही उल्लासपूर्ण, उत्साह से भरी, खिली हुई होती है । ये ललितकाश है ।
ललिता सहस्रनाम में हम देवी माँ के एक हजार नाम जपते हैं। नाम का एक अपना महत्त्व होता है । यदि हम चन्दन के पेड़ को याद करते हैं तो हम उसके इत्र की स्मृति को साथ ले जाते हैं। सहस्रनाम में देवी के प्रत्येक नाम से देवी का कोई गुण या विशेषता बताई जाती है ।
हमारे जीवन के विभिन्न पड़ावों में बालपन से किशोरावस्था, किशोरावस्था से युवावस्था और इसी तरह .. हमारी आवश्यकताएं और इच्छाएं बदलती रहती है । इस सब के साथ हमारी चेतना की अवस्था में भी महती बदलाव होते हैं। जब हम प्रत्येक नाम का जप करते हैं, तब वे गुण हमारी चेतना में जागृत होते हैं और जीवन में आवश्यकतानुसार प्रकट होते हैं।
देवी माँ के नाम के जप से हम अपने भीतर विभिन्न गुणों को जागृत करके उन गुणों को अपने चारों ओर के संसार में प्रकट होते देख और समझ पाने की शक्ति भी पाते हैं। हम सभी अपने प्राचीन ऋषियों के आभारी है जिन्होंने दिव्यता का आराधन उसके संपूर्ण वैविध्य गुणों के साथ किया जिसने हमारे लिए जीवन को पूर्णता से जीने का मार्ग प्रशस्त किया।
सहस्रनाम का जप अपने में ही एक पूजा विधि है । ये मन को शुद्ध करके चेतना का उत्थान करता है । इस जप से हमारा चंचल मन शांत होता है । भले ही आधे घंटे के लिए ही सही मन ईश्वर से एक रूप और उनके गुणों के प्रति एकाग्र होता है और भटकना रुक जाता है । ये विश्राम का सामान्य रूप है ।
सहस्रनाम में भाषा का सौंदर्य अद्भुत है । भाषा बहुत मोहक है और सामान्य और गहरे अर्थ दोनों ही चित्ताकर्षक हैं। उदहारण के लिए कमलनयन का अर्थ सुन्दर और पवित्र दृष्टि है । कमल कीचड़ में खिलता है । फिर भी ये सुन्दर और पवित्र रहता है । कमलनयन व्यक्ति इस संसार में रहता है और सभी परिस्थितियों में इसकी सुंदरता और पवित्रता को देखता है ।
ललिता, पाठक को सहस्रनाम में वर्णित विभिन्न गुणों से पहचान कराकर उनके दोनों प्रकार के (गूढ़ और सामान्य) अर्थों की झलक भी देने के उद्देश्य को पूरा करती है । किसी विशिष्ट गुण के विभिन्न सन्दर्भ को बहुत सुंदर तरीके से पिरोया गया है । जो साथ ही एक ही गुण के विभिन आयाम प्रस्तुत कर देती है ।
हमें ये जानना चाहिए कि काम इस धरा पर एक बहुत ही सुन्दर और महान लक्ष्य के लिए आये हैं। जब श्रद्धा और जाग्रति के साथ पाठ किया जाता है, ललिता हमारी चेतना में शुध्दि लाकर हमें सकारात्मकता, क्रियाशीलता और उल्लास का भंडार बना देती है । इसलिए आइये आनंद मय हों और संसार के लिए उल्लास रूप हो जाये ।
श्री ललिता सहस्रनाम की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड पुराण से है, महामहिम श्री हयग्रीव जी द्वारा श्री महर्षि अगस्त ऋषि को ब्रह्माण्ड रहस्य की व्याख्या के समय श्री ललिता सहस्रनाम का रहस्य बताया गया था ।
यह नकारात्मक ज्योतिषीय प्रभावों को वश में करने में मदद करता है, इनमें उन दोषों को शामिल किया जाता है जो जन्म समय की ग्रहों की खराब स्थिति से उत्पन्न होते हैं, ललिता सहस्त्रनाम दुर्भाग्य और श्राप से दूर कर सकता है । जो व्यक्ति ललिता सहस्त्रनाम का जाप करता है उसका भाग्य हमेशा उसका साथ देता है ।
इसका मनोवैज्ञानिक लाभ भी है, दैनिक ललिता सहस्रनाम का जप करते हुए मन को काफी आराम मिलता हैं और अवांछित चिंताओं और विचलित करने वाले विचारों से मुक्ति मिलती है, इससे मन में सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने और कुशलता सीखने की शक्ति प्राप्त होती है ।
श्री ललिता सहस्त्रनाम अपने जीवन में बाधाओं को दूर करने का अंतिम उपाय है, यह आपके जीवन में मौजूद महत्वपूर्ण योजनाओं को तेज़ी से और आपके रास्ते पर बाधाओं और चुनौतियों को दूर करने में मदद कर सकता है, बढ़ती ऊर्जा स्तर और आत्मविश्वास के साथ, आप अपने जीवन के लक्ष्यों की ओर जल्दी और ऊर्जावान रूप से आगे बढ़ सकते हैं ।
श्री ललिता सहस्रनाम का विशेष महत्व है, श्री ललिता सहस्रनाम के पाठ से इष्टदेवी प्रसन्न हो जाती है और उपासक की कामना को पूर्ण करती है, यदि उपासक नित्य पाठ न कर सके तो पूण्य दिवसों पर संक्रांति पर दीक्षा दिवस पर, पूर्णिमा पर, शुक्रवार को अपने जन्मदिवस पर, दक्षिणायन, उत्तरायण के समय, नवमी, चतुर्दशी संक्रान्ति आदि को अवश्य पाठ करें ।
यदि आप भी अपने जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो श्री ललिता सहस्त्रनाम के नीचे दिए गए लाभों के बारे में एक बार अवश्य जानें ।
श्री ललिता सहस्रनाम के जप से क्या लाभ होता है :-
पूर्णिमा के दिन श्री चन्द्र बिम्ब में श्री जी का ध्यान कर पंचोपचार पूजा के उपरान्त पाठ करने से साधक के समस्त रोग नष्ट हो जाते है, और वह दीर्घ आयु होता है, दो वर्ष तक हर पूर्णिमा को यह प्रयोग करने से ये प्रयोग सिद्ध हो जाता है । ज्वर से दुखित मनुष्य के सर पर हाथ रखकर पाठ करने से दुखित मनुष्य का ज्वर दूर हो जाता है ।
श्री ललिता सहस्रनाम एवं श्री ललिता सहस्रनामावली का पाठ करते समय अपने सामने एक गिलास में जल भरकर रखें । पाठ समाप्त होने के बाद इस जल को अपने मस्तक पर छिड़कने से ग्रहों की बुरी दशा के कारण आ रही कठिनाईयों से विश्राम मिलता है ।
सहस्रनाम से अभिमंत्रित भस्म को धारण करने से सभी ऋतुजनित रोग शान्त हो जाते है, इसी प्रकार सहस्रनाम से अभिमंत्रित जल से अभिषेक करने से दुखी मनुष्यो की पीड़ा शांत हो जाती है ।
सुधासागर के मध्य में श्री ललिताम्बा का ध्यान कर पंचोपचार पूजन करके श्री ललिता सहस्रनाम पाठ करने या सुनाने से आन्तरिक व्याधियों से विश्राम एवं सर्प आदि की विष पीड़ा भी शांत हो जाती है ।
श्री ललिता सहस्रनाम एवं श्री ललिता सहस्रनामावली के पाठ से आकस्मिक मृत्यु और दुर्घटना का भय नहीं रहता है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का नित्य पाठ करने वाले साधक को देखकर जनता मुग्ध हो जाती है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाले साधक के शत्रुओं को पक्षीराज भगवान शरभेश्वर नष्ट कर देते हैं ।
श्री ललिता सहस्रनाम का नित्य पाठ करने वाले साधक के विरुद्ध अभिचार करने वाले शत्रु को माँ प्रत्यंगिरा खा जाती है, और साधक को क्रूर दृष्टि से देखने वाले वैरी को मार्तंड भैरव अँधा कर देते है ।
जो श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाले साधक की चोरी करता है उसे क्षेत्रपाल देवता मार देते है ।
यदि कोई विद्वान विद्वता के घमंड में आकर श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाले साधक से शास्त्रार्थ करता है तो माँ नकुलीश्वरी देवी उसका वाकस्तम्भन कर देती है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने वाले साधक के शत्रु चाहे वो राजा ही क्यों न हो माँ दण्डिनी उसे नष्ट कर देती है ।
छः मास पर्यंत श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से साधक के घर में लक्ष्मी स्थिर हो जाती है ।
एक मास पर्यंत तीन बार श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से सरस्वती साधक की जिह्वा पर विराजने लगती है ।
निस्तन्द्र होकर एक पक्ष पर्यंत श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से साधक में वशीकरण शक्ति आ जाती है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का विधिवत् नियमित पाठ करने वाला व्यक्ति यश एवं प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेता है ।
शुक्रवार के दिन श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से आर्थिक परेशानियां समाप्त हो जाती है । व्यक्ति को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए परेशान नहीं होना पड़ता ।
वन्ध्या (बाँझ) स्त्री को श्री ललिता सहस्रनाम से अभिमंत्रित माखन खिलाने से वह शीघ्र गर्भ धारण करती है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का नियमित पाठ करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है ओर पाठ करने वाले व्यक्ति के शरीर का एक-एक कण अद्भुत ऊर्जा और ओज से भर जाता है ।
जो पूर्णिमा के दिन श्रीचक्रराज में श्री ललिता सहस्रनाम से अर्चन करता है वो स्वयं श्री ललिताम्बा स्वरूप हो जाता है । महानवमी के दिन श्रीचक्रराज में सहस्रनाम से अर्चन करने से मुक्ति हस्तगत होने की सम्भावना होती है ।
तीन वर्ष पर्यन्त प्रत्येक शुक्रवार के दिन श्रीचक्रराज में श्री ललिता सहस्रनाम से माँ का अर्चन करने वाला अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण कर सब प्रकार के सौभाग्य युक्त पुत्र और पौत्रों से सुशोभित होकर विविध सुखों को भोगता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर सकता है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का निष्काम पाठ करने से ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने की सम्भावना होती है, जिससे साधक आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाता है ।
श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करने से धनकामी धन को विद्यार्थी विद्या को यशकामी यश को प्राप्त करता है ।
हमारे जीवन के विभिन्न पड़ावों में बालपन से किशोरावस्था, किशोरावस्था से युवावस्था और इसी तरह .. हमारी आवश्यकताएं और इच्छाएं बदलती रहती है । इस सब के साथ हमारी चेतना की अवस्था में भी महती बदलाव होते हैं । जब हम प्रत्येक नाम का जप करते हैं, तब वे गुण हमारी चेतना में जागृत होते हैं और जीवन में आवश्यकतानुसार प्रकट होते हैं ।
देवी माँ के नाम के जप से हम अपने भीतर विभिन्न गुणों को जागृत करके उन गुणों को अपने चारों ओर के संसार में प्रकट होते देख और समझ पाने की शक्ति भी पाते हैं । हम सभी अपने प्राचीन ऋषियों के आभारी है जिन्होंने दिव्यता का आराधन उसके संपूर्ण वैविध्य गुणों के साथ किया जिसने हमारे लिए जीवन को पूर्णता से जीने का मार्ग प्रशस्त किया।सहस्रनाम का जप अपने में ही एक पूजा विधि है । ये मन को शुद्ध करके चेतना का उत्थान करता है । इस जप से हमारा चंचल मन शांत होता है । भले ही आधे घंटे के लिए ही सही मन ईश्वर से एक रूप और उनके गुणों के प्रति एकाग्र होता है और भटकना रुक जाता है । यह विश्राम का सामान्य रूप है ।
ललितासहस्रनाम में भाषा का सौंदर्य अद्भुत है । भाषा बहुत मोहक है और सामान्य और गहरे अर्थ दोनों ही चित्ताकर्षक हैं । उदहारण के लिए कमलनयन का अर्थ सुन्दर और पवित्र दृष्टि है । कमल कीचड़ में खिलता है फिर भी ये सुन्दर और पवित्र रहता है । कमलनयन व्यक्ति इस संसार में रहता है और सभी परिस्थितियों में इसकी सुंदरता और पवित्रता को देखता है ।
ललिता, पाठक को सहस्रनाम में वर्णित विभिन्न गुणों से पहचान कराकर उनके दोनों प्रकार के (गूढ़ और सामान्य) अर्थों की झलक भी देने के उद्देश्य को पूरा करती है । किसी विशिष्ट गुण के विभिन्न सन्दर्भ को बहुत सुंदर तरीके से पिरोया गया है । जो साथ ही एक ही गुण के विभिन आयाम प्रस्तुत कर देती है ।
जब श्रद्धा, भक्ति और जाग्रति के साथ पाठ किया जाता है, तब ललिता हमारी चेतना में शुद्धि लाकर हमें सकारात्मकता, क्रियाशीलता और उल्लास का भंडार बना देती है ।