जिस प्रकार अपौरूषेय वेदों की प्रमाणिकता है उसी प्रकार शिव प्रोक्त होने से आगमशास्त्र (तंत्र) की भी प्रमाणिकता है ।
सूत्ररूप में वेदों में, एवं विशुद्ध रूप से तंत्र शास्त्रों में श्रीविद्या साधना का विवेचन है । शास्त्रों में श्रीविद्या के बारह उपासक बताये गये है – मनु, चन्द्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य, अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, शिव और दुर्वासा ये श्रीविद्या के द्वादश उपासक हैं ।
श्रीविद्या के उपासक आचार्यो में दत्तात्रेय, परशुराम, ऋषि अगस्त, दुर्वासा, आचार्य गौडपाद, आदिशंकराचार्य, पुण्यानंद नाथ, अमृतानन्द नाथ, भास्करानन्द नाथ, उमानन्द नाथ प्रमुख हैं । इस प्रकार श्रीविद्या का अनुष्ठान चार भगवत् अवतारों दत्तात्रेय, श्री परशुराम, भगवान ह्यग्रीव और आदिशंकराचार्य ने किया है ।
श्रीविद्या साक्षात् ब्रह्मविद्या है । श्रीविद्या साधना समस्त ब्रह्मांड प्रकारान्तर से शक्ति का ही रूपान्तरण है । सारे जीव-निर्जीव, दृश्य- अदृश्य, चल- अचल पदार्थो और उनके समस्त क्रिया कलापों के मूल में शक्ति ही है । शक्ति ही उत्पत्ति, संचालन और संहार का मूलाधार है । इस प्रकार श्रीविद्या ही वह ब्रह्ममूल विद्या है जो समस्त शक्तियों और समस्त ज्ञान विज्ञान व विद्याओं का एकमात्र सर्वोच्च मूल स्रोत्र है !