।। अन्तर्प्रज्ञा जागरण साधना सत्र के प्रारम्भ होने की आगामी तिथी दिनांक 07/01/2022 है, तथा इस साधना हेतु पन्जिकरण करने कि अन्तिम तिथी दिनांक 29/12/2021 है !।।
अन्तर्प्रज्ञा जागरण साधना (प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण) प्रत्येक चरण पांच दिवसीय !
इस साधना के लाभ :- यह साधना विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण साधना होती है, इस साधना के प्रभाव से व्यक्ति में सभी विषयों में नवीन सम्भावनाओं को खोजने, ब्रह्माण्ड व अपने शरीर में व्याप्त अनन्त शुक्ष्म तरंगों व अणुओं का स्पष्टता से अध्ययन कर नवीन जानकारियां प्राप्त करने व भूत – भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है ।
- इस साधना के प्रभाव से समस्त दैहिक, दैविक व भौतिक अवस्थाओं, तत्वों व शक्तियों के शुक्ष्म – अतिशुक्ष्म स्तर तक के गहन विज्ञान व प्रणाली को पूर्ण स्पष्टता के साथ जाना व समझा जा सकता है, तथा सभी विषयों में नवीन सम्भावनाओं को खोज कर स्वयं को व समाज को नवीन उपलब्धियों से सुसज्जित किया जा सकता है ।
- इस साधना के द्वारा स्वयं के अवचेतन व ब्रह्माण्ड में व्याप्त अनन्त शुक्ष्म तरंगों व अणुओं का स्पष्टता से अध्ययन कर नवीन आविष्कारों का सृजन किया जा सकता है ।
- इस साधना के प्रभाव से व्यक्ति की बौद्धिक, मानसिक क्षमता व स्मरण शक्ति का अप्रत्याशित विकास होता है ।
- अत्यन्त गूढ़ से गूढ़ प्रश्न का पुर्णतः सटीक उत्तर स्वयं के अवचेतन से प्राप्त किया जा सकता है ।
- अतीत में जाकर किसी घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है, अथवा भविष्य में प्रवेश किया जा सकता है ।
- अपनी मानसिक शक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति के मनोभावों, विचारों को स्पष्टता से जाना जा सकता है ।
- मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं । एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही प्राप्त की जा सकती है ।
- इस साधना के प्रभाव से व्यक्ति के बौद्धिक, मानसिक व स्मृति सम्बन्धी सभी दोष नष्ट हो जाते हैं, व प्रखर बुद्धि, स्मृति का विकास होता है ।
- अन्तर्प्रज्ञा जाग्रत किये हुए व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता है और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं ।
अनिवार्य योग्यताएं :- इस साधना शिविर में निम्नलिखित नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता रखने वाले सभी पुरुष साधक सम्मिलित हो सकते हैं !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक बिना हिले डुले एक ही स्थिर आसन में बैठने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक मन की पूर्ण एकाग्रता से रहने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से ब्रहमचर्य से युक्त रहने में सक्षम हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से सात्विक भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से मार्गदर्शक गुरु के प्रति आस्थावान हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से उत्तम प्राण ऊर्जा (उत्साह) की भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से परमार्थ की भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में साधना की पूर्णता हेतु गुरु द्वारा प्रदत्त अनिवार्य निर्देशों व साधना के नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो !
- साधनाकाल के लिए अनिवार्य व्यवहारिक नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो ! व्यवहारिक नियमों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें !
साधना अवधि :- नियमानुसार यह साधना पन्द्रह दिवस की है, जिसको पांच (5) दिन की साधना के पृथक – पृथक तीन से पांच चरणों में पृथक – पृथक समय पर विधिवत् सम्पन्न किया जाता है ! उपरोक्त “योग्यता” के लिए लिखे गए निर्देशों व साधना के नियमों में समझौतावादी, स्वेच्छाचारी साधक के लिए यह साधना अवधि अनन्त काल तक की भी हो सकती है !
उपस्थिति व पंजिकरण :- साधना हेतु साधना प्रारम्भ होने की तिथि से न्यूनतम सात दिवस पूर्व तक किया गया पंजिकरण ही मान्य होगा, तथा साधना की तिथि से एक दिवस पूर्व दोपहर तक श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर उपस्थित होना अनिवार्य है ।
अनिवार्य :- पहचान व पते की पुष्टि के लिए किसी भी वैद्य अभिलेख की एक छायाप्रति व मूलप्रति तथा लाल, पीले, श्वेत, गुलाबी या बसंती रंग की एक धोती, एक गर्म चादर व लेखन सामग्री साथ में लाना अनिवार्य है !
इस साधना में सम्मिलित होने के लिए उपरोक्त लिखी गई इस साधना हेतु सभी “अनिवार्य योग्यताओं” को प्राप्त करने के लिए हमारे यहां से संचालित निःशुल्क साधनापूर्व प्रशिक्षण शिविर को उत्तीर्ण करना अनिवार्य है, अन्यथा दीक्षा/साधना से वंचित रखा जाता है ।
व्यय :- व्यय हेतु आप अपनी सुविधानुसार निम्नलिखित विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन कर सकते हैं ! सभी सज्जनों से विनम्र आग्रह है कि व्यय के लिए “विकल्प 1” का चयन करने का प्रयत्न करें ।
विकल्प 1 (स्वव्यवस्था) :- आपको साधनाकाल में अपने रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने की स्वतंत्रता होती है, तथा आपको केवल 1/- रु (एक रुपया) मात्र साधना की दक्षिणा के रूप में हमें देना होता है ।
विकल्प 2 (नि:शुल्क) :- निःशुल्क अन्तर्प्रज्ञा जागरण साधना की सुविधा केवल विद्यार्थियों व सन्तों के लिए एवं निःशुल्क साधनापूर्व प्रशिक्षण शिविर में चिन्हित हुए गरीब/असहाय व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है । साधना हेतु उपस्थित होने पर आपको अपनी पहचान/ तथा विद्यार्थियों को वर्तमान में विद्यार्थी होने का वैद्य अभिलेख प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा ।
विकल्प 3 (स:शुल्क) :- साधना हेतु साधक की विश्राम, भोजन आदि की सम्पूर्ण व्यवस्थाओं सहित प्रतिव्यक्ति कुल व्यय का अग्रिम भुगतान करना होता है ।
श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा व साधना हेतु “पहले आओ-पहले पाओ” के आधार पर स्थान दिया जाता है, तथा निर्धारित संख्या पूर्ण होते ही नवीन पंजिकरण बंद कर दिए जाते हैं !
श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा महिलाओं को दीक्षा/साधना प्रदान नहीं की जाती है, यह हमारा व्यक्तिगत विषय है, अतः इस पर कोई प्रश्न न करें ।