श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का प्रत्येक प्राणी को स्वतन्त्र अधिकार है | तथा श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए किसी भी प्रकार की दीक्षा लेने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ देवी महात्मय का श्रद्धापूर्वक बखान व मनन है, तथा इसमें केवल देवी की प्रसन्नता हेतु पूजा, पाठ, हवन व मनन किया जाता है, जिस कारण श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए किसी भी प्रकार की दीक्षा लेने की न कोई आवश्यकता है, न कोई औचित्य है, न कोई अनिवार्यता है, और न ही ऐसा कोई विधान है | अतः कोई भी प्राणी निश्चिन्त होकर स्वतंत्रतापूर्वक श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकता है | किन्तु पाठ करने में कोई त्रुटि न हो इसके लिए किसी भी विद्वान् ब्राह्मण से विचार, विमर्श कर निर्देशन अवश्य ले लेना चाहिए |
केवल श्री दुर्गा सप्तशती के किसी एक मन्त्र विशेष का अनुष्ठान करने के लिए ही दीक्षा ली जा सकती है | सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए दीक्षा लेना आवश्यक नहीं है |
अतिविशेष जानकारी :- वर्तमान समय में अनभिज्ञ समाज के मध्य में बहुप्रचलित हो रही “बीजमन्त्रात्मक श्री दुर्गा सप्तशती” का पाठ नहीं करना चाहिए | क्योंकि गूढ़ मन्त्रों को निर्गूढ़ करके सार्वजनिक करना प्राथमिक स्तर पर ही शास्त्र व सिद्धान्त के विरुद्ध है, जो “बीजमन्त्रात्मक श्री दुर्गा सप्तशती” समाज में उपलब्ध है वह संकलित की गई रचना है, और वास्तविक “बीजमन्त्रात्मक श्री दुर्गा सप्तशती” प्रत्येक को प्राप्त नहीं है, और शास्त्र व सिद्धान्त के विरुद्ध होने के कारण इसके पाठ का सकारात्मक लाभ मिलने की सम्भावनाएं कितनी हो सकती हैं ? यह आप स्वयं ही विचार करें !
क्योंकि प्रत्येक गूढ़ विषय, गूढ़ मन्त्र व गूढ़ विधान के साथ में उसके निर्गतकर्ता द्वारा यह कहा गया है कि :- इस विधान को गोपनीय ही रखें व अनाधिकारी को न बताएं, तो ऐसे गूढ़ विधानों को निर्गूढ़ कर अथवा किसी सिद्धयोगी द्वारा लिखित गोपनीय पाण्डुलिपि की प्रति करके उसे पुस्तक के रूप में सार्वजनिक कर देने वाले अर्थात श्री दुर्गा सप्तशती के गूढ़ मन्त्रों को निर्गूढ़ रूप में अनावृत “बीजमन्त्रात्मक श्री दुर्गा सप्तशती” की पुस्तक या लेख के रूप में सार्वजनिक करने वाले महानुभाव स्वयं कितने शास्त्र व सिद्धांतों की मर्यादा का पालन करने वाले हैं ? वैसा ही उनकी कृति का भी प्रभाव होता है |
ऐसा करने वाले महानुभाव तो वैसे भी संदेहास्पद हैं, क्योंकि जब वो विधान के निर्गतकर्ता द्वारा उसको गोपनीय रखने के निर्देश को ही नहीं समझ सके तो सात सौ श्लोकों में छुपे हुए गूढ़ बीजमन्त्र कैसे समझ पाए होंगे ??? निश्चित ही यह शास्त्र व सिद्धान्तों की मर्यादा का उल्लंघन है |
अतः समझदार व्यक्तियों को वर्तमान में बहुप्रचलित हो रही “बीजमन्त्रात्मक श्री दुर्गा सप्तशती” का पाठ नहीं करना चाहिए | केवल मूल व सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती का ही विधि पूर्वक पाठ करना चाहिए !