उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जनपद के विकास खण्ड ऊखीमठ के अन्तर्गत मां काली का प्राचीन मंदिर है । किवदंती के अनुसार मां भगवती ने इस स्थान पर दैत्यों के सहांर के लिए काली का रूप धारण किया था । उस समय से इस स्थान पर मां काली के रूप की पूजा की जाती है ।
यह कालीमठ मंदिर मां काली को समर्पित है । इसे भारत के प्रमुख सिद्ध शक्ति पीठों में से एक माना जाता है । तथा तन्त्र व साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामख्या व ज्वालामुखी के सामान अत्यंत ही उच्च कोटि का है ।
स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड के बासठवें अध्याय में मां के इस मंदिर का वर्णन है । रुद्रशूल नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं जो बाह्मी लिपि में लिखे गए हैं । इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है । इस मंदिर की पुनर्स्थापना शंकराचार्य जी ने की थी । यहां मां काली ने रक्तबीज नामक राक्षस का संहार किया था । इसके बाद देवी मां इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं । आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित हैं ।
भारतीय इतिहास के अद्वितीय लेखक कालिदास का साधना स्थल भी यही कालीमठ मंदिर है, इसी दिव्य स्थान पर जन्म से मुर्ख रहे कालिदास ने माँ काली को प्रसन्न कर विद्वता को प्राप्त किया था । ओर कालीमठ की माँ काली के आशीर्वाद से ही उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें से संस्कृत में लिखा हुआ एकमात्र काव्य ग्रन्थ “मेघदूत” तो विश्वप्रसिद्ध है ।
नवरात्रि के शुभ अवसर पर इस मंदिर में देश के विभिन्न भागों से हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं ।