श्री षोडशी महाविद्या इस श्रष्टि की केन्द्रीय सर्वोच्च नियामक एवं क्रियात्मक सत्ता मूल शक्ति की प्रकृति (गुण) स्वरूपी प्रधान सोलह कलाओं में से तृतीय कला, प्रवृत्ति (स्वभाव) स्वरूपी प्रधान सोलह योगिनियों में से तृतीय योगिनी, तुरीय आदि प्रधान सोलह अवस्थाओं में से तृतीय अवस्था एवं चतु: आयाम से युक्त क्रिया रूपी सोलह विद्याओं में से तृतीय विद्या के रूप में सृजित हुई है !
यह महाविद्या इस लोक में सनातन धर्म व संस्कृति से प्रेरित सम्प्रदायों में दस महाविद्याओं में श्री षोडशी महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं । जबकि इस लोक व अन्य लोकों में सनातन धर्म से प्रेरित सम्प्रदायों के अतिरिक्त अन्य धर्म व सम्प्रदायों में उनकी अपनी भाषा, संस्कृति व मत के अनुसार अन्य अनेक नामों से जानी जाती हैं ।
षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है । इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं । इन्हें अवस्था भेद के कारण से ललिता, राजराजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है । इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए षोडशी भी कहा जाता है । माता षोडशीने अपने चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण किये हुए हैं ।
भगवान सदाशिव की तरह माँ षोडशी के भी चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है । इन्हें तंत्र में श्री विद्या की अधिष्ठायक देवी और श्रीयंत्र अर्थात श्री चक्र सम्राज्ञी के नाम से जाना जाता है !
श्री गुरु मत्स्येन्द्र नाथ जी के ‘कौल ज्ञान निर्णय’ ग्रंथ में इस सत्य के पर्याप्त संकेत मिलते हैं, इसके अतिरिक्त महायोगी जगतगुरु गोरक्षनाथजी द्वारा प्रतिपादित “सिद्ध सिद्धान्त पद्धति” में पाँच शिव और पाँच उनकी शक्तियों का नाम आता है, जो की क्रमश – अपरशिव परमशिव, शून्यशिव, निरन्जनशिव और परमात्मशिव की क्रमशः शक्तियाँ है, विजाशक्ति, पराशक्ति, अपराशक्ति, सूक्ष्माशक्ति और कुण्डलिनीशक्ति ।
नाथ संप्रदाय में परमात्मा के मातृस्वरूप की कुण्डलिनी शक्ति के रूप में उपासना करने का विशेष प्रावधान है । साथ ही मत्स्येन्द्र नाथजी द्वारा प्रचलित “शंखाढाल” क्रिया में भी इन्ही की पूजा और कर्म को प्रधान माना गया है. योग मार्ग में कुण्डलिनी शक्ति तो भोग मार्ग में कामेश्वरी नाम से यही शक्ति उपासित है !
कहा जाता है कि भगवती माँ षोडशी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं !
भगवती षोडशी के चार स्वरूप हैं :- षोडशी, त्रिपुरसुन्दरी, राजराजेश्वरी और ललिता !
इनका मुख्यपीठ कामाख्या शक्तिपीठ मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या में नीलाचल पव॑त पर स्थित है । मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के ५१ शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है । यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है ।
महाविद्या “षोडशी” के भैरव “कामेश्वर” है !
श्री षोडशी महाविद्या ध्यान :-
उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां रक्तालिप्तपयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् ।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ॥
जाप मंत्र :-
(सभी शक्तियों के बीजमन्त्रों के लिए अत्यन्त गोपनीयता का विधान होता है इसी कारण से सभी शक्तियों के बीजमन्त्र एवं वैदिक मन्त्र मूल ग्रन्थों में गूढ़कृत लिखे गए हैं, गोपनीयता का विधान होने के कारण बीजमन्त्रों को कहीं भी सार्वजनिक लिखा या बोला नहीं जा सकता है, बीजमन्त्र को केवल दीक्षा विधान के द्वारा गुरुमुख से प्राप्त किया जा सकता है ! इसलिए यहां पर इन महाविद्या के वैदिक व बीजमन्त्र को नहीं लिखा गया है !)
शाबर मन्त्र :-
सत नमो आदेश,
गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी,
ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई
पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई
ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो,
मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद,
तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश,
हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश,
त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी,
इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी,
उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला,
योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता,
इतना त्रिपुरसुन्दरी जाप सम्पूर्ण भया,
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ||