श्री तारा महाविद्या इस श्रष्टि की केन्द्रीय सर्वोच्च नियामक एवं क्रियात्मक सत्ता मूल शक्ति की प्रकृति (गुण) स्वरूपी प्रधान सोलह कलाओं में से द्वितीय कला, प्रवृत्ति (स्वभाव) स्वरूपी प्रधान सोलह योगिनियों में से द्वितीय योगिनी, तुरीय आदि प्रधान सोलह अवस्थाओं में से द्वितीय अवस्था एवं चतु: आयाम से युक्त क्रिया रूपी सोलह विद्याओं में से द्वितीय विद्या के रूप में सृजित हुई है !
यह महाविद्या इस लोक में सनातन धर्म व संस्कृति से प्रेरित सम्प्रदायों में दस महाविद्याओं में श्री तारा महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं । जबकि इस लोक व अन्य लोकों में सनातन धर्म से प्रेरित सम्प्रदायों के अतिरिक्त अन्य धर्म व सम्प्रदायों में उनकी अपनी भाषा, संस्कृति व मत के अनुसार अन्य अनेक नामों से जानी जाती हैं ।
तंत्र मार्ग में देवी तारा, काली और ललिता के सामान ही प्रमुख शक्ति है । तारने वाली होने के कारण माता को तारा भवतारिणी भी कहा जाता है । सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी । शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं ।
भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा , एकजटा और नील सरस्वती ।
तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है । यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है । इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है । प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं ।
तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है । देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है । तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी ‘तारा’ का काफी महत्व है ।
जब देव और दानव समुदमंथन कर रहे थे तो विष निर्माण हुआ उस हलाहल से विश्व को बचाने के लिये शिव शंकर सामने आये उन्होने विष प्राषन किया. लेकिन गडबड यह हुई के उनके शरीर का दाह रुकने का नाम नही ले रहा थ. इसलिये मा दूर्गा ने तारा मा का रूप लिया और भगवान शिवजी ने शावक का रूप लिया, फिर तारा देवी उन्हे स्तन से लगाकार उन्हे स्तनों का दूध पिलाने लगी !
उस वात्सल्य पूर्ण स्तंनपान से शिवजी का दाह कम हुआ. लेकिन तारा मा के शरीर पर हलाहल का असर हुआ जिसके कारण वह नीले वर्ण की हो गयी. जिस मा ने शिवजी को स्तनपान किया है, वो अगर हमारी भी वात्सल्यसिंधू बन जायेगी तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा. तारा माता भी मा काली जैसे सिर्फ कमर को हाथोंकी माला पहनती है. उसके गले मे भी खोपडियोंकी मुंड माला है.
वाक सिद्धि, रचनात्मकता, काव्य गुण के लिए शिघ्र मदद करती है. साधक का रक्षण स्वयमं माँ करती है इसलिये वह आपके शत्रूओं को जड से खत्म कर देती है !
महाविद्या “तारा” के भैरव “अक्षोभ्य” है !
श्री तारा महाविद्या ध्यान :-
मातर्तीलसरस्वती प्रणमतां सौभाग्य-सम्पत्प्रदे प्रत्यालीढ –पदस्थिते शवह्यदि स्मेराननाम्भारुदे ।
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रो कपालोत्पले खड्गञ्चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥
जाप मंत्र :-
(सभी शक्तियों के बीजमन्त्रों के लिए अत्यन्त गोपनीयता का विधान होता है इसी कारण से सभी शक्तियों के बीजमन्त्र एवं वैदिक मन्त्र मूल ग्रन्थों में गूढ़कृत लिखे गए हैं, गोपनीयता का विधान होने के कारण बीजमन्त्रों को कहीं भी सार्वजनिक लिखा या बोला नहीं जा सकता है, बीजमन्त्र को केवल दीक्षा विधान के द्वारा गुरुमुख से प्राप्त किया जा सकता है ! इसलिए यहां पर इन महाविद्या के वैदिक व बीजमन्त्र को नहीं लिखा गया है !)
शाबर मन्त्र :-
सत नमो आदेश,
गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी,
ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया ।
ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा-विष्णु-महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खड्ग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा ।
नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया ।
घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा ।
पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा, डाकिनी शाकिनी
भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया ।
चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी ।
इतना तारा जाप सम्पूर्ण भया,
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ||