कैलाश त्रिशूली व नन्दा घुंगुटी के मध्य दुर्गम ग्लेशियरों व रहस्यमयी कन्दराओं के बीच स्थित है – परम शक्ति एवं परम शिव का पावन धाम- होमकुण्ड। 16000 फीट पर स्थित इस पावन स्थल पर मां नन्दा का पौराणिक मन्दिर है, जो पत्थरों से निर्मित है। मन्दिर के भीतर मां नन्दा शिलारूप में विराजमान हैं।
मन्दिर के बगल में मां नन्दा के धर्मभाई लाटू का मन्दिर है, जिसमें लाटू भी शिलारूप में विराजमान है, कुण्ड के बीचोंबीच हवन स्थल है। कुण्ड के एक ओर पत्थरों से निर्मित चैक स्थित है, जिस पर मां नन्दा की सात बहनें शिलाओं के रूप में विराजमान हैं, दूसरी ओर लगभग 50 फीट ऊंची विशाल पत्थर की शिला है जिस पर देवी का शक्ति चिन्ह है। होमकुण्ड रहस्य का आवरण ओढ़े हुये खतरनाक ग्लेशियरों से घिरा हुआ है।
मान्यता है कि देवी इसी स्थान से कैलाश की ओर गई थी, यहां से देवी का धर्मभाई लाटू एवं की सात बहनें वापस लौट आयीं थीे, इसीलिये इस स्थान पर उन्हें स्थापित किया गया है। नन्दा देवी राजजात यात्रा में भी सभी यात्री व सभी देवियों की डोलियां एवं देवताओं के निशाण इस स्थान से वापस लौट आते हैं, यहां से आगे जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है। यहां से देवी के साथ केवल उसकी यात्रा का अगुवा चैसिंगा मेढ़ा ही जाता है।
इस पवित्र होमकुण्ड में राजजात समापन कर देवी की सम्पूर्ण भेंट चैसिंगा मेढ़े की पीठ पर रख दी जाती है, और उसे कैलाश की ओर विदा कर दिया जाता है, इससे आगे की यात्रा मेढ़ा अकेले ही तय करता है और राजजात के राजकुंवर व अन्य सभी यात्री वापस लौट आते हैं।
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं, विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवति भवन्ति, विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः।।
हे मां भगवती नन्दा, हम तेरे दर्शन करने आये सभी भक्तों का कल्याण चाहते हैं, हे मां हम पूरे विश्व का कल्याण चाहते हैं।