यहां पर वह सभी नियम लिख दिए गए हैं जिनका श्री ज्योतिर्मणि पीठ से जुड़े प्रत्येक साधक को दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में पालन करना अनिवार्य है !
- 1 :- श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी सभी जानकारियों पर विचार विमर्श व विसंगतियों के निराकरण हेतु विचार विमर्श व चर्चा करने हेतु आप पुर्णतः स्वतन्त्र हैं, अतः इस समय पर अपने विषय को स्वतंत्रता पूर्वक कहें तथा दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधि इत्यादि जानकारियों व उत्तर को व्यवधान उत्पन्न किये बिना ध्यानपूर्वक सुने अथवा लिख लें ! किन्तु फोन, ईमेल, व्हाट्सअप आदि माध्यमों से आपको दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी कोई भी जानकारी या सहायता नहीं दी जा सकेगी ! यदि दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में कोई व्यवधान या जानकारी में त्रुटि हो तो उस स्थिति में आपको स्वयं उपस्थित होकर ही वार्ता करनी होगी !
आपके प्रश्नों के उत्तर व अन्य जानकारियां आपको उन्हें पूरा सुनकर व पूरा समझकर स्मरण रखने व साधनात्मक व्यवहार में सम्मिलित करने के लिए दिए जाते हैं, न कि उनको पूरा सुने व समझे बिना उत्तर देने या बहस करने के लिए ! - 2 :- सामने बोलने वाला चाहे कोई भी हो उसकी बात को पूरा सुने व समझे बिना मध्य में बोलना या उत्तर देना निषेध है, व किन्हीं अन्य के मध्य में चल रही वार्ता के मध्य में अपनी बात रखना या व्यवधान देना निषेध है !
आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में आपके साथ आवश्यक प्रश्नोत्तर किये जाने की आवश्यकता होती है, जिसमें आपको अपने दीक्षा/साधना/अनुष्ठान करने के उद्देश्य व उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से लाभ प्राप्त करने की आपके द्वारा बनाई गई रूपरेखा को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना अनिवार्य होता है ! ताकि यदि आपके उद्देश्य व आपके द्वारा बनाई गई रूपरेखा में कोई विसंगति हो तो उसका निस्तारण किया जा सके !
आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में आपके साथ आवश्यक प्रश्नोत्तर किये जाने के समय पर आपको प्रत्येक प्रश्नों के उत्तर को समय का व्यय किये बिना निःसंकोच होकर स्पष्ट रूप से तत्काल ही व्यक्त करना अनिवार्य होता है !
यदि आप अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में आवश्यक प्रश्नोत्तर के समय स्वतन्त्र रूप से वार्ता कर हमें आश्वस्त नहीं करते हैं, तथा आपके उद्देश्य व आपके द्वारा बनाई गई रूपरेखा में कोई विसंगति शेष रह जाती है तो निश्चित रूप से आपको दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में सम्मिलित होने से वंचित ही रखा जाता है !
- 3 :- आप अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सामग्री एवं रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करते हैं अथवा अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सामग्री एवं रहन सहन की व्यवस्थाओं हेतु हमें भुगतान करते हैं तो इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि हमने आपको आपके दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में सफल होने का वचन दे दिया है, क्योंकि वह भुगतान आपने अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सामग्री एवं रहन सहन की व्यवस्थाओं हेतु किया हुआ होता है न कि दीक्षा/साधना/अनुष्ठान को क्रय करने के लिए ! आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की सफलता तो उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान हेतु मांगी गई “अनिवार्य योग्यता” को पूर्ण करते हुए इस पृष्ठ पर लिखे सभी नियमों का आपके द्वारा दृढ़तापूर्वक पालन करने से सम्भव होगी ! जिसमें हमारी भूमिका केवल आपके दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में आपको निर्देशित करते हुए आपसे आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की प्रक्रियाएं विधिवत् सम्पन्न कराने की होती है !
- 4 :- अपनी स्वयं की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी विषयों से अतिरिक्त चर्चा करना, अनावश्यक जानकारियों का आदान – प्रदान करना, अपनी जानकारियों, मान्यताओं एवं धारणाओं को प्रमाणित कराने का प्रयास करना निषेध है !
प्रत्येक साधना/अनुष्ठान के सम्बन्ध में हमारी वेबसाइट पर प्रत्येक साधना/अनुष्ठान के लिए अनिवार्यताओं सहित सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध है, अनिवार्यतः यह ध्यान रखें कि हमारी वेबसाइट पर प्रत्येक साधना/अनुष्ठान के पृष्ठ पर उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्धित जीवन में होने वाले लाभ को स्पष्ट लिखा गया है किन्तु उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से जो लाभ वहां नहीं लिखा गया हो आप स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से उस लाभ की अपेक्षा कर दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में सम्मिलित होना चाहते हैं तो निश्चित ही आपको दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से वंचित कर दिया जायेगा !
यदि आप किसी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में हमारी वेबसाइट पर लिखे गए उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के लाभ व अधिकार क्षेत्र से पृथक स्वेच्छा से या अन्यत्र से प्राप्त जानकारियों के आधार पर लाभ की अपेक्षा करते हैं तो यह आपकी अपनी समस्या होगी जिसका समाधान आपको स्वयं ही करना होगा ! अतः कृपया हमारी वेबसाइट पर प्रत्येक साधना/अनुष्ठान के पृष्ठ पर दी गई सम्पूर्ण जानकारियों का अन्त तक ध्यानपूर्वक अवलोकन करने के उपरान्त ही दीक्षा/साधना/अनुष्ठान का चयन करें !
- 5 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में गुरु प्रदत्त नियमों का शतप्रतिशत पालन करना चाहिए, क्योंकि गुरु द्वारा प्रदत्त नियम शिष्य के लिए बन्धन न होकर दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में आने वाली कठिनाईयों व अवरोधों के निराकरण का गुप्त सूत्र होते हैं !
- 6 :- प्रत्येक दीक्षा/साधना/अनुष्ठान अनेक सम्प्रदाय व परम्पराओं में अनेक दीक्षा/साधना/अनुष्ठान पद्धतियों व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधियों से सम्पन्न की जाती हैं, तथा प्रत्येक सम्प्रदाय व परम्पराओं में प्रत्येक दीक्षा/साधना/अनुष्ठान पद्धतियों व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधियों में भिन्नता होती है ! तथा प्रत्येक दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियम व प्रक्रियाएं उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के अपने अंग होते हैं जिनको पूर्ण किए बिना वह दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्पन्न नहीं हो सकती है, अतः आप जिस सम्प्रदाय व परम्परा के गुरु से दीक्षित होकर दीक्षा के समय जिस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान पद्धति व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधि को प्राप्त करते हैं, आप केवल उस पद्धति व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधि के द्वारा ही अपनी वह दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्पन्न कर सकते हैं ! अन्य पद्धतियों या विधियों का अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधि में संक्रमण कर दिए जाने से वह दीक्षा/साधना/अनुष्ठान निश्चित ही निष्फल हो जाती है ! इसलिए दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियमों व प्रक्रियाओं में किसी भी प्रकार का परिवर्तन या संशोधन करना पुर्णतः निषेध है !
- 7 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियम, विधि, पद्धति व प्रक्रियाएं दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के अपने अभिन्न अंग हैं, अतः दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियम, विधि, पद्धति व प्रक्रियाओं में किसी भी प्रकार की छूट या समझौता करने का आग्रह या प्रयास करना तथा दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विधान में अपनी इच्छा या सुविधानुसार परिवर्तन करना निषेध है ! दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विधान में अपनी इच्छा या सुविधानुसार किसी भी प्रकार की छूट, समझौता या परिवर्तन करने का आग्रह अथवा विधान में अपनी इच्छा या सुविधानुसार परिवर्तन करने का प्रयास मात्र भी करने वाले साधकों को सदैव के लिए साधनाओं में सम्मिलित होने से निश्चित रूप से प्रतिबन्धित किया जा सकता है !
क्योंकि जब ऐसे साधकों को साधनाओं के नियम व प्रक्रियाओं के विरुद्ध स्वेच्छा, स्व नियम या स्व सुविधानुसार नियमों में छूट, समझौता या परिवर्तन करके दीक्षा/साधना/अनुष्ठान करने में अपना धन, समय व आस्था को ही व्यतीत करना है तो ऐसे साधकों को साधना का प्रारम्भ करने की ही कोई आवश्यकता नहीं है ! - 8 :- किसी कार्य या बात के लिए किसी व्यक्ति को विवश करना व कोई आपको विवश कर रहा है ऐसी धारणा बनाना निषेध है, जबकि गुरु द्वारा प्रदत्त दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियमों का पालन करने हेतु प्रत्येक साधक बाध्य है !
- 9 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में अन्य साधकों के प्रति सहयोगात्मक बने रहना अनिवार्य है !
- 10 :- श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर अपने व अन्य साधक के दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के समय में व संध्या काल में शाम 4 बजे के बाद प्रातः तक मोबाईल फोन आदि खुले रखना व इस समय में मोबाईल फोन आदि पर वार्ता करना तथा चित्र/चलचित्र लेना पुर्णतः निषेध है ! यह आपकी साधनात्मक व मानसिक अवस्था की सुरक्षा व अनुकूलता हेतु अत्यन्त आवश्यक है, इसलिए केवल दोपहर के 12 बजे से शाम के 4 बजे के मध्य ही आप मोबाईल आदि खुले रखने व इनका उपयोग करने हेतु पूर्णतः स्वतन्त्र होते हैं ! अन्यथा आपको दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से वंचित कर आपको प्रस्थान करा दिया जाना ही सुनिश्चित होता है !
- 11 :- अपनी या अन्य साधक की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न करना तथा दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के “अति संवेदनशील समय” पर निर्देशों की अवहेलना करना निषेध है !
- 12 :- अनावश्यक, संदिग्ध व अमर्यादा की गतिविधियों में लिप्त होने अथवा किसी भी प्रकार का विवाद या व्यवधान उत्पन्न करना तथा स्थान, व्यक्ति व सिद्धान्तों की मर्यादा का उल्लंघन करना निषेध है !
- 13 :- किसी भी प्रकार की चतुराई, छद्म नाम, छद्म पहचान, छद्म आयु या अपनी अन्य संदिग्धता आदि का परिचय देना निषेध है !
- 14 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में शरीर पर साबुन, शैम्पू, तेल, क्रीम, पाउडर, इत्र आदि का प्रयोग व क्षौर कर्म करना निषेध है !
- 15 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में दिन के समय सोना निषेध है !
- 16 :- अपने झूठे पात्र स्वयं धोकर रखना व अपने दीक्षा/साधना/अनुष्ठान स्थल, विश्राम स्थल व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के वस्त्रों को स्वच्छ रखना अनिवार्य है !
- 17 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में झूठा भोजन करना, झूठे हाथों से किसी अन्य को भोजन देना, झूठा “खाद्य” बचाकर रखना व उसको बाद में खाना, झूठे हाथों से झूठे पात्रों को धोने के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य करना या किसी अन्य वस्तु को हाथ लगाना निषेध है !
- 18 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में कायिक, वाचिक, मानसिक रूप से झूठ, छल, कपट, क्रोध, ईर्ष्या, ग्लानी, वाद-विवाद व दैत्यत्व को उत्पन्न व प्रदर्शित करना निषेध तथा स्वयं में स्वच्छता, पवित्रता व देवत्व को उत्पन्न करना अनिवार्य है !
- 19 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के सम्बन्ध में गुरु द्वारा दिए गए निर्देशों एवं दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधि के अतिरिक्त अपने असीमित ज्ञान व जानकारियों के भण्डार को अपने पास ही सुरक्षित रखना, और यहां पर निर्दिष्ट दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियमों व अनिवार्यताओं को पूर्ण करना अनिवार्य है !
- 20 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में अंडा, मांस, मदिरा, गुटखा, पान, सिगरेट, लहसुन, प्याज बाजार में उपलब्ध रस, पेय पदार्थ, नमकीन, बिस्कुट, ब्रेड आदि खाद्य आदि का प्रयोग व बाहर होटल, ढाबे आदि का खाद्य ग्रहण करना निषेध है !
- 21 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में झूठ, छल, क्रोध व मैथुन सम्बन्धी कर्म, विचार, गीत, संगीत, चलचित्र और मिथ्या वार्तालाप करना निषेध है ! (झूठ, क्रोध व मैथुन सम्बन्धी कर्म, विचार, गीत, संगीत और मिथ्या वार्तालाप के परिणाम स्वरूप शरीर से ऊर्जा/वीर्य का कण मात्र भी दूषित या क्षरण हो जायेगा तो दीक्षा/साधना/अनुष्ठान उसी समय खण्डित हो जाती है, व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान पुनः प्रथम दिन से प्रारम्भ करनी होती है) !
- 22 :- दीक्षा के समय पर आपको मन्त्र की पूरी वास्तविक ध्वनी व उच्चारण तथा दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधि इत्यादि केवल दीक्षा के दिन ही भलीभांति समझाया, सुनाया व कंठस्थ कराया जा सकता है, इसके बाद पुनः कभी भी ऐसा करने का पुर्णतः निषेध है ! अतः आप उस समय पर ही एकाग्रचित्त होकर दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधान के सम्पूर्ण विषय को सुनने व समझने के लिए बाध्य होंगे !
आप जिस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान को सम्पन्न करने हेतु उपस्थित हो रहे हैं, हमारी वेबसाईट पर उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के पंजिकरण के पृष्ठ पर उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के लिए लिखी गई “अनिवार्य योग्यताओं” को दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के प्रारम्भ होने के समय से ही दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्पन्न होने तक अपने व्यवहार में पूर्ण रूप से प्रभावी करना होगा !
- 23 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के सम्बन्ध में अपनी असक्षमता, कठिनाई, हीनता, त्रुटि आदि को अपने गुरु अथवा गुरु द्वारा निर्धारित किए गए सक्षम व्यक्ति के समक्ष तत्काल ही अवश्य व्यक्त करना अनिवार्य है, ताकि समय रहते समस्या का समाधान किया जा सके ! किन्तु दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के सम्बन्ध में अपनी असक्षमता, कठिनाई, हीनता, त्रुटि आदि को अपने गुरु अथवा गुरु द्वारा निर्धारित किए गए सक्षम व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य साधक या व्यक्ति के समक्ष व्यक्त करना निषेध है ! (इससे आपकी समस्या का समाधान हो या ना हो किन्तु अन्य साधक पर मानसिक दुष्प्रभाव पड़कर उसकी साधना/मानसिकता दुष्प्रभावित हो सकती है)
- 24 :- प्रत्येक दीक्षा/साधना/अनुष्ठान का प्रारम्भ पश्वाचार (पशु भाव) से होता है, तथा प्रत्येक दीक्षा/साधना/अनुष्ठान पश्वाचार (पशु भाव) से वीराचार (वीर भाव) होते हुए दिव्याचार (दिव्य भाव) में पूर्णता को प्राप्त होती है ! और इन तीनों अवस्थाओं को सम्पन्न करने के बाद ही साधक अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय को केवल किसी अत्यन्त आवश्यक आवस्था में ही किसी के सम्मुख व्यक्त कर सकता है, अन्यथा इससे पूर्व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय की गोपनीयता भंग होने पर वह दीक्षा/साधना/अनुष्ठान दुष्प्रभावित या खण्डित हो जाना सहज होता है ! अतः प्रत्येक साधक को अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के सभी अंगों की इन तीनों अवस्थाओं (पश्वाचार, वीराचार व दिव्याचार) को सम्पन्न कर लिए जाने तक दृढ़तापूर्वक निम्न प्रकार से गोपनीयता सुनिश्चित करनी अनिवार्य है :
अपनी स्वयं की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान पूर्ण रूप से सम्पन्न होने तक उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्ध रखने वाले अपने गुरु के अतिरिक्त अपने साधनात्मक अनुभवों, मन्त्रों व विधियों को कभी भी किसी के सम्मुख कहना, लिखना, पूछना व बताना पूर्णतः निषेध है !
अपनी स्वयं की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान अथवा किसी अन्य साधक की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी गोपनीयता किसी भी प्रकार से भंग करना पूर्णतः निषेध है ! (क्योंकि ऐसा करने से आपकी अथवा अन्य साधक की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान दुष्प्रभावित या खण्डित हो सकती है, जिसका पूरा उत्तरदायित्व आप का ही होगा !)
यह अत्यन्त आवश्यक होगा कि प्रत्येक साधक केवल अपनी स्वयं की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्ध रखे व अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में “किसी भी अन्य व्यक्ति” से चर्चा न करे तथा किसी अन्य साधक से उसकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी जानकारियां प्राप्त करने का प्रयत्न भी ना करे ! (क्योंकि ऐसा करने से आपकी अथवा अन्य साधक की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान दुष्प्रभावित या खण्डित हो सकती है, जिसका पूरा उत्तरदायित्व आप का ही होगा !)
किसी अन्य साधक से उसकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी किसी भी प्रकार से गोपनीयता भंग कराने का प्रयास करना पूर्णतः निषेध है ! (क्योंकि ऐसा करने से उस साधक की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान दुष्प्रभावित या खण्डित हो सकती है !)
अपनी स्वयं की दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी जानकारी अन्य साधक के साथ बांटना व अन्य साधक से उसकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर अपने दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधान में सम्मिलित करना अथवा अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी प्रक्रिया अन्य साधक को उसके दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधान में सम्मिलित करने की सलाह देना पूर्णतः निषेध है ! (क्योंकि एक ही दीक्षा/साधना/अनुष्ठान एक ही समय पर अलग अलग साधकों को पृथक पृथक पद्धति या दीक्षा/साधना/अनुष्ठान विधियों से सम्पन्न कराई जा सकती है, प्रत्येक साधक केवल उसको बताई गई विधि के अनुसार ही दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्पन्न कर सकता है, ऐसा नहीं करने से प्रक्रियाओं का संक्रमण या अतिक्रमण होकर दोनों की ही दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है !)
यज्ञ के समय भी गुरु प्रदत्त मन्त्र का उच्चारण मानसिक ही किया जायेगा और आहुति देते समय मन्त्र के अन्त में केवल “स्वाहा” को ही मुख से उच्चारण करके बोला जा सकता है !
यदि आपको अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में अपने गुरु से कोई चर्चा करनी हो तो उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्ध रखने वाले अपने गुरु से अत्यन्त गोपनीयतापूर्वक उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में चर्चा करने की अनुमति प्राप्त कर लेने के उपरान्त अत्यन्त गोपनीयतापूर्वक ही वार्ता की जा सकती है !
किसी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्ध नहीं रखने वाले गुरु या अन्य व्यक्ति से किसी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में चर्चा करने तथा किसी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्ध रखने वाले अपने गुरु से अत्यन्त गोपनीयतापूर्वक उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय में चर्चा करने की अनुमति लिए बिना चर्चा करने पर भी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की गोपनीयता भंग होकर वह दीक्षा/साधना/अनुष्ठान दुष्प्रभावित या खण्डित हो जाएगी जिसका पूरा उत्तरदायित्व आपका ही होता है !
यदि आप किसी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में पूर्णता को प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे सरल मार्ग यह है कि आपके माता, पिता, दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की दीक्षा देकर उस दीक्षा/साधना/अनुष्ठान को सम्पन्न कराने वाले गुरु तथा उससे आगे की अन्य दीक्षा/साधना/अनुष्ठान हेतु दीक्षा देकर दीक्षा/साधना/अनुष्ठान को सम्पन्न कराने वाले गुरु के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के विषय की कोई भी जानकारी न हो सके ! अर्थात् यदि आप अपनी साधनाओं को गोपनीय अभियानों के रूप में सम्पन्न करते हैं तो आपको उनका पूर्ण लाभ अवश्य प्राप्त होगा, अन्यथा आप अपने बहुमूल्य धन, समय, मानसिक शान्ति व आस्था-श्रद्धा का अनावश्यक ह्रास ही कर रहे होते हैं, जिसके उत्तरदायी आपकी “मर्यादाहीन मानसिकता और आप स्वयं” ही हैं !
हम आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की गोपनीयता व आपकी व्यक्तिगत गोपनीयता की रक्षा-सुरक्षा के दृष्टिगत आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्बन्धी कोई भी चित्र/चलचित्र या जानकारी कभी भी सार्वजनिक नहीं करते हैं ताकि आपका साधनात्मक परिश्रम व्यय न हो जाये ! अतः आपको भी अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के सभी अंगों की दृढ़तापूर्वक गोपनीयता व सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए जो कि निश्चित रूप से आपका ही कर्तव्य होता है !
उपरोक्त नियम संख्या 24 व उसके अन्तर्गत लिखे हुए नियमों में से कोई भी त्रुटि किए जाने पर आपकी अपनी वह दीक्षा/साधना/अनुष्ठान तो दुष्प्रभावित अथवा खण्डित हो ही जाएगी, इसके साथ ही आपको सदैव के लिए श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर साधनाओं में सम्मिलित होने से निश्चित रूप से प्रतिबन्धित कर दिया जायेगा, जिसका पूरा उत्तरदायित्व आप का ही होगा !
- 25 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में बिना सिलाई व बिना टांका लगे हुए लाल, पीले या श्वेत रंग के केवल एक ही वस्त्र को पहनकर दीक्षा/साधना/अनुष्ठान में बैठना अनिवार्य है, सर्दी के समय पर ऊपर से बिना सिलाई की हुयी गर्म चादर ओढ़ सकते हैं, तथा उन वस्त्रों को पहनकर शौचालय, मूत्रालय में जाना निषेध है !
- 26 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में आसन पर बैठने के बाद कर्म संपन्न होने तक न तो आसन बदलें और न ही आसन त्यागें (आसन स्थिर न रखने से दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की ऊर्जा का वर्तुल खण्डित हो जाता है और कोई लाभ नहीं मिलता है) .
- 27 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में माला द्वारा जपने वालों को “जप संख्या” व बिना माला के मानसिक जप करने वालों को “मानसिक जप के समय” को किसी दिन अधिक व किसी दिन कम करना निषेध है !
- 28 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में दीक्षा/साधना/अनुष्ठान करने के स्थान, दीक्षा/साधना/अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान करने के समय का परिवर्तन करना निषेध है !
- 29 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान काल में प्रतिदिन दीक्षा/साधना/अनुष्ठान करने के उपरान्त अपने कुलगुरु या उस मन्त्र की दीक्षा देने वाले गुरु अथवा मन्त्र के देवता को वह जप व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान का कर्म समर्पित करना अनिवार्य है ! दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के प्रथम दिन जिसको भी वह जप व दीक्षा/साधना/अनुष्ठान का कर्म समर्पित किया जायेगा दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सम्पन्न होने तक उसको ही समर्पित किया जायेगा ! (गुरु, कुलगुरु व देवता इनमें से जो पुलिंग हो उसके दाहिने हाथ में व जो स्त्रीलिंग हो उसके बाएँ हाथ में समर्पित करना चाहिए)
- 30 :- साधना, स्थान, गुरु व देवता के नियमों, सिद्धान्तों व क्रियाओं में समझौता, स्वेच्छा, अतिक्रमण व संक्रमण करना निषेध है !
- 31 :- श्री ज्योतिर्मणि पीठ की और से यहां आने वाले सभी साधकों, प्रशिक्षणार्थियों व आगंतुकों को स्पष्ट निर्देश है कि यह सभी अपने सम्बन्ध व संपर्क को श्री ज्योतिर्मणि पीठ तक ही सिमित रखेंगे, यहां के सम्बन्ध व संपर्क को आपस में व्यक्तिगत बनाना व मोबाईल/फोन नं आदि का आदान-प्रदान करना पुर्णतः निषेध है !
- 32 :- जिस प्रकार से आप अपनी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान सामग्री एवं रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने हेतु स्वतंत्र होते हैं हमें भुगतान करने हेतु बाध्य नहीं होते है, उसी प्रकार यदि आपने दीक्षा/साधना/अनुष्ठान हेतु पंजिकरण करके हमें भुगतान किया है अथवा आपने अपनी सभी व्यवस्थाएं स्वयं की हैं, तो आपकी योग्यता, गतिविधियां, आचरण व व्यवहार सहज, मानवीय, गुरुगम्य व साधनात्मक नियमों के अनुकूल न होने पर हम आपको अपने साथ या दीक्षा/साधना/अनुष्ठान अनुष्ठान में बनाए रखने हेतु बाध्य नहीं होते हैं !
- 33 :- आप भलीभांति स्मरण रखें कि इस पृष्ठ पर लिखे हुए किसी भी नियम का आपके द्वारा उल्लंघन करने या होने पर आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान दुष्प्रभावित होना सुनिश्चित होता है, जिसका पूरा उत्तरदायित्व भी आप का ही होता है ! अतः इस स्थिति में आपकी अनावश्यक व महत्वहीन बातों या तर्कों को सुनने के लिए हम अपने व्यक्तिगत जीवन, जीवनचर्या, दिनचर्या व अपने व्यक्तिगत समय में आपके हस्तक्षेप अथवा आपके द्वारा हमारे व्यक्तिगत जीवन, जीवनचर्या, दिनचर्या व बहुमूल्य समय का दुरूपयोग करने की स्वतन्त्रता आपको प्रदान नहीं करते हैं !
- 34 :- यदि आप उपरोक्त लिखित नियमों तथा आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के समय पर बताए गए नियमों या अनिवार्यताओं का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करते हैं, ऐसा दो बार होने पर हम अपने बहुमूल्य समय का आपके द्वारा दुरूपयोग होना मानते हैं, ओर आपको सदैव के लिए श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर साधनाओं में सम्मिलित होने से निश्चित रूप से प्रतिबन्धित कर दिया जायेगा, जिसका पूरा उत्तरदायित्व आप का ही होगा !
- 35 :- यदि आप उपरोक्त लिखित नियमों तथा आपकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के समय पर बताए गए नियमों या अनिवार्यताओं का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करते हैं, और उस त्रुटि को आप स्वीकार व सुधार नहीं करते हैं तो इससे केवल आपके ऊपर से विश्वास ही उठेगा जिसके बाद आपको सदैव के लिए श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर आवागमन करने से भी निश्चित रूप से प्रतिबन्धित कर दिया जायेगा, जिसका पूरा उत्तरदायित्व आप का ही होगा !
- 36 :- यदि आप अपनी त्रुटि पर अपनी त्रुटि के स्थान पर अन्य की त्रुटियों को सम्मुख लाकर अपनी त्रुटि को उसकी आड़ में दबाने का प्रयत्न करते हैं तो इसका सीधा सा यह अर्थ होता है कि आपका ध्यान अपने सुधार पर न होकर अन्य की त्रुटि के प्रदर्शन द्वारा अपने बचाव पर होता है !
- 37 :- नियमों, अनिवार्यताओं व निर्देशों का उल्लंघन हो जाने पर उसको स्वीकार कर पुनः ऐसा नहीं करने हेतु प्रवृत्त होना आपकी सुयोग्यता की वृद्धि का कारण बनेगा, जबकि नियमों, अनिवार्यताओं व निर्देशों के उल्लंघन को अपने तर्कों द्वारा सही साबित करने का प्रयास करने से आप सदैव के लिए अपना स्थान व सम्मान खो देंगे !
- 38 :- हम आपके साधनात्मक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अपने बहुमूल्य समय को निवेश करना चाहते हैं ताकि उससे आपको आपका लक्ष्य प्राप्त हो सके, किन्तु हम अपने बहुमूल्य समय को आपके लिए व्यय कभी भी नहीं करना चाहेंगे ! और यही अपेक्षा हम आपसे भी रखते हैं कि आप भी अपने बहुमूल्य समय का केवल निवेश ही करें ! नियमों, निर्देशों व अनिवार्यताओं का उल्लंघन करके अपने व हमारे बहुमूल्य समय का व्यय न होने दें ! अन्यथा हमारे बहुमूल्य समय का आपके द्वारा दुरूपयोग या व्यय होने की आशंका होने के साथ ही आपका दीक्षा/साधना/अनुष्ठान शिविर से निष्कासित होना सुनिश्चित होता है !
- 39 :- आपका आचरण, व्यवहार, नियमों व निर्देशों का अनुपालन ही हमारी और से आपका सहयोग करने या न करने की सीमा को सुनिश्चित करता है !
- 40 :- यदि आपको उपरोक्त में किसी भी नियम की अनिवार्यता को स्वीकार कर उसका पालन करने में आपत्ति है तो आपको अपना व हमारा बहुमूल्य समय नष्ट करने के लिए दीक्षा/साधना/अनुष्ठान शिविर में उपस्थित ही नहीं होना चाहिए !
- 41 :- जो साधक अपने दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से सम्बन्धित सामग्री स्वयं लेकर आते हैं, उनकी दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की सामग्री की मात्रा, शुद्धता व अनुपात हमारी वेबसाईट पर लिखे हुए के अनुसार सही नहीं होने पर उनको दीक्षा/साधना/अनुष्ठान की प्रक्रिया से वंचित रखा जायेगा !
- 42 :- दीक्षा/साधना/अनुष्ठान को निर्बाध सम्पन्न करने के लिए दीक्षा/साधना/अनुष्ठान के नियमों का विधिवत् पालन करना आपका स्वयं का कर्तव्य है, अतः आप भलीभांति यह सुनिश्चित करके रखें कि उपरोक्त सभी नियमों का विधिवत् पालन नहीं करने पर आपको बिना किसी पूर्व चेतावनी के दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से वंचित किया जा सकता है !
- 43 :- उपरोक्त विषयों में त्रुटियां करने/नियमों में छूट/नियमों को अनदेखा/नियमों में परिवर्तन या संशोधन/नियमों का पालन नहीं करने का प्रयास या आग्रह करने वाले साधकों/प्रशिक्षणार्थियों/आगन्तुकों को हमारे द्वारा निश्चित ही सदैव के लिए प्रतिबन्धित किया जाना सुनिश्चित होता है, क्योंकि ऐसे सज्जन प्रयत्नशील या सक्षम साधकों को भी उनके लक्ष्य से पथभ्रष्ट होने में मुख्य भूमिका निभाते हैं !
कृपया ध्यान दें :- आपके द्वारा उपरोक्त में से किसी भी नियम का उल्लंघन करने या होने पर आपको दीक्षा/साधना/अनुष्ठान से वंचित कर दिए जाने पर आप हमारे बारे में क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं इससे हमें कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ! क्योंकि केवल विश्वसनीय व योग्य व्यक्ति को ही साधनात्मक प्रक्रियाओं में सम्मिलित रखना हमारी प्राथमिकता है !