इस रहस्यमय श्रृष्टि के रहस्यों एवं सूत्रों को जानने के लिए आदिकाल से जीव तत्पर रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप जीव ने असंख्य सूत्रों को तो अवश्य खोज लिया है, किन्तु इसके रहस्य निरन्तर प्रयत्न करने के उपरान्त भी नहीं जान सक रहा है !
वहीँ इस श्रृष्टि में असंख्य रहस्य एवं सूत्र ऐसे हैं जो प्रत्येक जीव के निरन्तर सम्मुख रहते हैं, जीव निरन्तर उनका उपयोग भी करता रहता है, किन्तु उनके वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ रहता है !
इस रहस्यमय श्रृष्टि के रहस्यों एवं सूत्रों को जानने के लिए आदिकाल से ही जीव योग एवं समाधि का उपयोग करता आया है, जी हां वो ही योग एवं समाधि जो कि वर्तमान तथाकथित “आधुनिक व्यवसायीकरण” के समय में असंख्य विकृत रूपों एवं नामों से व्यावसायिक रूप धारण कर समाज में प्रचलित है ! “किन्तु यह योग समाधि पूर्ण रूप से कृत्रिम समाधि है” यह नैसर्गिक समाधि नहीं है !
प्रकृति ने प्रत्येक जीव को नैसर्गिक क्षमताओं से सम्पन्न किया है, उन्हीं क्षमताओं में “सर्वौच्च स्थान है नैसर्गिक समाधियों” का ! उन नैसर्गिक समाधियों के नाम हैं, क्रमशः :- “कामसमाधि, क्रोध समाधि एवं निद्रा समाधि” !
इनमें से कामसमाधि का निर्विकार उपयोग बाल ब्रह्मचारी योगिराज श्री कृष्ण ने सफलतापूर्वक किया है, वहीँ क्रोध समाधि का निर्विकार उपयोग श्री वैष्णवावतार श्री परशुराम जी एवं श्री दुर्वासा ऋषि जी ने सफलतापूर्वक किया है, एवं निद्रा समाधि का निर्विकार उपयोग अनेक सिद्ध, सन्यासी, योगीजन गुप्त रूप से आदिकाल से ही उपयोग करते आए हैं, इसलिए ही समाज में यह कहा जाता है कि “सोते हुए सन्यासी को कभी भी नहीं जगाना चाहिए” क्योंकि वह निद्रा समाधि में स्थित हो सकता है !
नैसर्गिक समाधि का रहस्य एवं सूत्र सामान्य जीव की मानसिक क्षमता से परे होने के कारण जीव ने अपने लिए कृत्रिम योग समाधि का अविष्कार कर अपने जीवन में अपनाया है ! ताकि वह सहज “योग समाधि” के सहारे अपना उत्थान करते हुए अन्त में इन्ही तीन “नैसर्गिक समाधियों” में से किसी एक के योग्य होकर उसका आश्रय लेकर आध्यात्म विज्ञान एवं श्रृष्टि के रहस्यों एवं सूत्रों को जानने के लिए अपना मार्ग प्रशस्त कर सके !