श्रीविद्या साधना वह एकमात्र सर्वोच्च साधना है जो अपने उपासक को समस्त भौतिक सुख, भोग प्रदान करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष से परिपूर्ण करती है ! तथा उपासक इनको हादी, कादी, कहादी व एक अन्य गुप्त (जिसे यहाँ सार्वजनिक करना उचित नहीं) में से किसी एक विधि में विधिवत दीक्षित होकर अपने आम्नाय के अनुसार क्रमानुसार श्रीविद्या की चारों शक्तियों को साधता हुआ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को प्राप्त करता है, अथवा श्रीविद्या की किसी एक शक्ति को साधकर केवल भौतिक सुख, भोग को ही प्राप्त करता है !
श्रीविद्या साधना एक मात्र ऐसी साधना है जो मनुष्य के जीवन में संतुलन स्थापित करती है । अन्य साधनाएं असंतुलित या एक तरफा शक्ति प्रदान करती हैं, इसलिए अनेक प्रकार की साधनाओं को करने वाले अनेक साधकों में न्यूनता के दर्शन होते हैं । वे अनेक प्रकार के अभावों और संघर्ष में दुःखी जीवन जीते हुए दिखाई देते है और इसके परिणाम स्वरूप जन सामान्य के मन में साधनाओं के प्रति अविश्वास और भय का जन्म होता है और वह साधनाओं से दूर भागता है । भय और अविश्वास के अतिरिक्त योग्य गुरू का अभाव, विभिन्न यम, नियम, संयम व साधना की सिद्धि में लगने वाला लम्बा समय और कठिन परिश्रम भी जन सामान्य को साधना क्षेत्र से दूर करता है । किंतु श्रीविद्या साधना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अत्यंत सरल, सहज और शीघ्र फलदायी है । सामान्य जन अपने जीवन में बिना किसी भारी फेरबदल के सामान्य जीवन जीते हुए भी सुगमता पूर्वक यह साधना कर लाभान्वित हो सकते हैं ।
सृष्टि के प्रारम्भ कल से ही श्रीविद्या साधना जीवन के प्रत्येक क्षे़त्र जैसे – धन धान्य समृद्धि, विद्या बुद्धि, यश, कीर्ति, रोजगार, संतान, साधना, सिद्धि व समस्त भोग व मोक्ष की प्राप्ति में साधक को पूर्ण सफलता प्रदान करती है । यह साधना व्यक्ति के सर्वांगिण विकास में सहायक है । प्रत्येक युग में श्रीविद्या की साधना ही शक्ति के समस्त रूपों में धन- समृद्धि, शासन सत्ता, बुद्धि, शक्ति, सफलता, दैविक, भौतिक व आर्थिक समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन रही है ।
मनुष्य के जीवन में भी सुख-दुःख का चक्र तो चलता ही रहता है, लेकिन अंतर यह है कि श्रीविद्या के साधक की आत्मा व मन मस्तिष्क इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि वह ऐसे कर्म ही नहीं करता कि उसे दुःख उठाना पड़े किंतु फिर भी यदि पूर्व जन्म के संस्कारों, कर्मो के परिणाम स्वरूप जीवन में कोई दुःख संघर्ष का समय आता है तो वह साधक उन सभी विपरीत परिस्थितियों से आसानी से मुक्त हो जाता है । वह अपने दुःखों को नष्ट करने में स्वंय सक्षम हो जाता है, यह परम सत्य है !
शाश्वत लाभ और उन्नति प्राप्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ साधना है किन्तु विधिवत दीक्षा लिए बिना इस साधना को कदापि नहीं करना चाहिए, अन्यथा साधक को प्रारम्भ में मानसिक विक्षिप्तता आर्थिक तंगी आदि का सामना करना पड़ जाया करता है, तथा बहुत समय बीतने पर अल्प लाभ ही मिल पता है ।
श्रेष्ठ गुरु के मार्गदर्शन में विधिवत दीक्षा लेकर की गई श्रीविद्या साधना बिना किसी दुष्परिणाम के मात्र 3 से 5 दिन के बाद से ही अपना प्रभाव देना प्रारम्भ कर देती है तथा 41 दिन में पूर्ण परिपक्व परिणाम प्रदान करती है !
यह परमकल्याणकारी उपासना करना मानव के लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है ।