।। शक्तिपात द्वारा अष्ट यक्षिणी साधना सत्र के प्रारम्भ होने की आगामी तिथी दिनांक 10/12/2022 है, तथा इस साधना हेतु पन्जिकरण करने कि अन्तिम तिथी दिनांक 03/12/2022 है !।।
।। इस तिथी के उपरान्त यह साधना दिनांक 04/07/2023 से प्रारम्भ होगी !।।
।। इस पृष्ठ पर लिखी गई साधना पद्धति में यज्ञ विधान अनिवार्य होने के कारण यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली सामग्री हेतु साधक द्वारा धन का व्यय किया जाता है, इसलिए यह सःशुल्क साधना है !।।
इस साधना का विशेष लाभ :- जो साधक कठिन साधनाओं को करने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं, ऐसे साधकों के लिए यह साधना विधि अत्यन्त ही सरल पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है । जिसमें गुरु शिष्य द्वारा नवरत्न, पंचधातु व अन्य वनस्पतियों से विशेष यज्ञानुष्ठान सम्पन्न कराने के बाद शिष्य को विशेष शक्तिपात यक्षिणी दीक्षा प्रदान करता है, तथा साधना के प्रत्येक दिन विशेष शक्तिपात करके साधना सम्पन्न कराता है । इस कारण से यक्षिणियों को सिद्ध करने की यह सबसे सरल विधि है ।
जिस कारण से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत शक्तिपात दीक्षा लेकर गुरु के सानिध्य में इस साधना को आसानी से संपन्न कर सकता है, इस साधना के सिद्ध हो जाने पर साधनाकाल में अभीष्ट यक्षिणी द्वारा अपनी उपस्थिति का आभास करा दिया जाता है ।
तथा भविष्य में भी साधक की इच्छा व आवश्यकतानुसार सामाजिक, धर्म व नैतिक सीमाओं के अन्दर रहते हुए यक्षिणी के अधिकार क्षेत्र के अधीन अनेक प्रकार से कार्य, व्यवसाय, रोजगार, धनार्जन आदि के लिए नवीन व सुदृढ़ मार्गों व कारणों का निर्माण होता है, अनेक प्रकार से धनार्जन के मार्ग प्रशस्त होकर आर्थिक क्षमताओं की वृद्धि व जीवन में सभी प्रकार से धन व भौतिक ऐश्वर्यों की पूर्णता के साथ सहयोग प्राप्त होता है ! यह साधना पूर्ण रूप से केवल भौतिक साधना होती है, यह साधना आध्यात्मिक या आत्मोत्थान के मार्ग का आधार कभी नहीं होती है !
साधना :- केवल पद्मावती, चन्द्रिका, रतिप्रिया, सुरसुन्दरी, मनोहारिणी, कामेश्वरी, अनुरागिनी व कनकावती में से साधक की इच्छा अथवा आवश्यकतानुसार केवल किसी एक यक्षिणी की ही दीक्षा प्रदान कर साधना संपन्न कराई जा सकती है, दीक्षा के सैद्धान्तिक नियमानुसार एक बार में एक से अधिक दीक्षा नहीं ली जा सकती हैं !
अनिवार्य योग्यताएं :- यह साधना अत्यन्त ही सरल होती है जिसे कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत दीक्षा लेकर गुरु के सानिध्य में व सक्षम गुरु के शक्तियुक्त सहयोग से आसानी से संपन्न कर सकता है ! शक्तिपात यक्षिणी साधना में “प्रत्यक्ष यक्षिणी साधना व सामान्य यक्षिणी साधना” जैसी कठिन योग्यताओं कि आवश्यकता नहीं होती है, शक्तिपात यक्षिणी साधना को कोई असक्षम/विकलांग या बीमार व्यक्ति भी आसानी से सम्पन्न कर सकता है !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से मार्गदर्शक गुरु के प्रति आस्थावान हो !
- साधनाकाल में साधना की पूर्णता हेतु गुरु द्वारा प्रदत्त अनिवार्य निर्देशों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो !
- साधनाकाल के लिए अनिवार्य व्यवहारिक नियमों का पालन करने की क्षमता से युक्त हो ! व्यवहारिक नियमों के लिए यहां क्लिक करें !
साधना अवधि :- नियमानुसार यह साधना तीन से पांच दिन में विधिवत् सम्पन्न होती है ।
उपस्थिति व पंजिकरण :- साधना हेतु साधना प्रारम्भ होने की तिथि से न्यूनतम सात दिवस पूर्व तक किया गया पंजिकरण ही मान्य होगा, तथा साधना की तिथि से एक दिवस पूर्व दोपहर तक श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर उपस्थित होना अनिवार्य है ।
अनिवार्य :- पहचान व पते की पुष्टि के लिए किसी भी वैद्य अभिलेख की एक छायाप्रति व मूलप्रति तथा लाल, पीले, श्वेत, गुलाबी या बसंती रंग की एक धोती, एक गर्म चादर व लेखन सामग्री साथ में लाना अनिवार्य है !
व्यय :- व्यय हेतु आप अपनी सुविधानुसार निम्नलिखित विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन कर सकते हैं ! सभी सज्जनों से विनम्र आग्रह है कि व्यय के लिए “विकल्प 1” का चयन करने का प्रयत्न करें ।
विकल्प 1 (स्वव्यवस्था) :- आपको अपनी दीक्षा/साधना सामग्री एवं रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने की स्वतंत्रता होती है, तथा आपको केवल 1/- रु (एक रुपया) मात्र दीक्षा/साधना की दक्षिणा के रूप में हमें देना होता है ।
विकल्प 2 (स:शुल्क) :- “शक्तिपात विधान” द्वारा पांच (5) दिवसीय स:शुल्क दीक्षा/साधना हेतु साधक की विश्राम, भोजन तथा दीक्षा/साधना सामग्री की सम्पूर्ण व्यवस्थाओं सहित प्रतिव्यक्ति कुल व्यय 19500/ रू है ।
श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा व साधना हेतु “पहले आओ-पहले पाओ” के आधार पर स्थान दिया जाता है, तथा निर्धारित संख्या पूर्ण होते ही नवीन पंजिकरण बंद कर दिए जाते हैं !
श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा महिलाओं को दीक्षा/साधना प्रदान नहीं की जाती है, यह हमारा व्यक्तिगत विषय है, अतः इस पर कोई प्रश्न न करें ।