।। सामान्य यक्षिणी साधना सत्र के प्रारम्भ होने की आगामी तिथी दिनांक 10/12/2022 है, तथा इस साधना हेतु पन्जिकरण करने कि अन्तिम तिथी दिनांक 30/11/2022 है !।।
।। इस तिथी के उपरान्त यह साधना दिनांक 04/07/2023 से प्रारम्भ होगी !।।
।। इस पृष्ठ पर लिखी गई साधना पद्धति में यज्ञ विधान अनिवार्य होने के कारण यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली सामग्री हेतु साधक द्वारा धन का व्यय किया जाता है, इसलिए यह सःशुल्क साधना है !।।
यह साधना अत्यन्त ही सरल पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है जिसे दक्षिणाचार, समयाचार, कौलाचार आदि पद्धतियों से चक्रार्चन, पीठार्चन, लिंगार्चन आदि विधियों से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत दीक्षा लेकर गुरु के निर्देशानुसार गुरु के सानिध्य में आसानी से संपन्न कर सकता है, इस साधना के सिद्ध हो जाने पर अभीष्ट यक्षिणी द्वारा अपनी उपस्थिति का आभास बनाए रखा जाता है, तथा केवल शूक्ष्म रूप से साधक के स्वसम्बन्धी कार्यों में निरन्तर सहयोग व मार्गदर्शन करती रहती है । पत्नी व प्रेमिका के रूप में यह साधना सम्पन्न किये जाने पर हानिकारक तथा माता व बहन के रूप में यह साधना किये जाने पर पुर्णतः सात्विक, सुरक्षित व आर्थिक संसाधनों की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ फलदायिनी साधना होती है ।
इस साधना के लाभ :- यह दीक्षा लेकर साधना करने से साधक को साधनाकाल में अभीष्ट यक्षिणी का केवल शूक्ष्म रूप से अनुभव होता है, स्पष्ट रूप से कुछ भी दिखाई या सुनाई नहीं देता है, केवल परछाई आदि के रूप में आभास हो जाना तक ही सम्भावित होता है ! तथा भविष्य में भी साधक की इच्छा व आवश्यकतानुसार शूक्ष्म अनुभूतियों के साथ अदृश्य रूप में सामाजिक, धर्म व नैतिक सीमाओं के अन्दर रहते हुए यक्षिणी के अधिकार क्षेत्र के अधीन अनेक प्रकार से कार्य, व्यवसाय, रोजगार, धनार्जन आदि के लिए नवीन व सुदृढ़ मार्गों व कारणों का निर्माण होता है, अनेक प्रकार से धनार्जन के मार्ग प्रशस्त होकर आर्थिक क्षमताओं की वृद्धि व जीवन में सभी प्रकार से धन व भौतिक ऐश्वर्यों की पूर्णता के साथ सहयोग प्राप्त होता है ! यह साधना पूर्ण रूप से केवल भौतिक साधना होती है, यह साधना आध्यात्मिक या आत्मोत्थान के मार्ग का आधार कभी नहीं होती है !
इस साधना के विशेष लाभ :- सभी साधक यक्षिणी को प्रत्यक्ष सिद्ध करना चाहते हैं, किन्तु प्रत्यक्ष सिद्ध करने के लिए अत्यन्त जटिल योग्यताओं की आवश्यकता होती है जिसे प्रत्येक साधक पूर्ण नहीं कर पाता है जिस कारण साधना में असफल होने की संभावनाएं बनी रहती हैं । किन्तु यह पांच दिवसीय सामान्य यक्षिणी साधना जो कि अत्यन्त सरल होती है इसको सम्पन्न कर लेने से यक्षिणी का शूक्ष्म रूप में अनुभव हो जाता है व उस यक्षिणी से सम्बन्धित कार्यों में साधक को सफलता व शूक्ष्म रूप से सहयोग व मार्गदर्शन मिलने लग जाता है । इस साधना के प्रभाव से साधक की वह आवश्यकताएं पूर्ण होने के साथ ही आत्मविश्वास व उत्साह बढ़ जाने पर साधक भविष्य में प्रत्यक्षिकरण साधना की योग्यता को प्राप्त कर इस साधना को ही प्रत्यक्ष यक्षिणी सिद्धि में परिवर्तित कर सकता है ।
यह दीक्षा प्राप्त कर लेने के उपरान्त साधक दीक्षा के समय प्राप्त हुए मन्त्र एवं साधना विधान के अनुसार श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर प्रकृति द्वारा निर्मित अनुकूल वातावरण में निर्बाध रहकर यह साधना हमारे निर्देशन में संपन्न कर सकते हैं ।
साधना :- केवल पद्मावती, चन्द्रिका, रतिप्रिया, सुरसुन्दरी, मनोहारिणी, कामेश्वरी, अनुरागिनी व कनकावती में से साधक की इच्छा अथवा आवश्यकतानुसार केवल किसी एक यक्षिणी की ही दीक्षा प्रदान कर साधना संपन्न कराई जा सकती है, दीक्षा के सैद्धान्तिक नियमानुसार एक बार में एक से अधिक दीक्षा नहीं ली जा सकती हैं !
अनिवार्य योग्यताएं :- यह साधना अत्यन्त ही सरल होती है जिसे कोई भी साधक गुरु से विधिवत दीक्षा लेकर गुरु के सानिध्य में आसानी से संपन्न कर सकता है, तथा इस साधना में निम्नलिखित नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता रखने वाले सभी पुरुष साधक सम्मिलित हो सकते हैं !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक बिना हिले डुले एक ही स्थिर आसन में बैठने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक मन की एकाग्रता से रहने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से ब्रहमचर्य से युक्त रहने में सक्षम हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से वीरभाव (निर्भयता व पुरुषार्थ) की भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से मार्गदर्शक गुरु के प्रति आस्थावान हो !
- साधनाकाल में साधना की पूर्णता हेतु गुरु द्वारा प्रदत्त अनिवार्य निर्देशों व साधना के नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो !
- साधनाकाल के लिए अनिवार्य व्यवहारिक नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो ! व्यवहारिक नियमों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें !
इस साधना में सम्मिलित होने के लिए उपरोक्त लिखी गई सभी “अनिवार्य योग्यताओं” का पूर्ण होना अथवा हमारे यहां से संचालित निःशुल्क साधनापूर्व प्रशिक्षण शिविर को उत्तीर्ण करना अनिवार्य है, अन्यथा दीक्षा/साधना से वंचित रखा जाता है ।
साधना अवधि :- नियमानुसार यह साधना “मन्त्र जप व यज्ञ विधान” द्वारा पांच (5) दिवस तथा केवल “मन्त्र जप विधान” द्वारा इकत्तीस (31) दिवस में विधिवत् सम्पन्न होती है ! किन्तु उपरोक्त “योग्यता” के लिए लिखे गए निर्देशों व साधना के नियमों में समझौतावादी, स्वेच्छाचारी साधक के लिए यह साधना अवधि अनन्त काल तक की भी हो सकती है !
उपस्थिति व पंजिकरण :- साधना हेतु साधना प्रारम्भ होने की तिथि से न्यूनतम सात दिवस पूर्व तक किया गया पंजिकरण ही मान्य होगा, तथा साधना की तिथि से एक दिवस पूर्व दोपहर तक श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर उपस्थित होना अनिवार्य है ।
अनिवार्य :- पहचान व पते की पुष्टि के लिए किसी भी वैद्य अभिलेख की एक छायाप्रति व मूलप्रति तथा लाल, पीले, श्वेत, गुलाबी या बसंती रंग की एक धोती, एक गर्म चादर व लेखन सामग्री साथ में लाना अनिवार्य है !
व्यय :- व्यय हेतु आप अपनी सुविधानुसार निम्नलिखित विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन कर सकते हैं ! सभी सज्जनों से विनम्र आग्रह है कि व्यय के लिए “विकल्प 1” का चयन करने का प्रयत्न करें ।
विकल्प 1 (स्वव्यवस्था) :- आपको अपनी दीक्षा/साधना सामग्री एवं रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने की स्वतंत्रता होती है, तथा आपको केवल 1/- रु (एक रुपया) मात्र दीक्षा/साधना की दक्षिणा के रूप में हमें देना होता है ।
विकल्प 2 (स:शुल्क) :- “मन्त्र जप व यज्ञ विधान” द्वारा पांच (5) दिवसीय स:शुल्क दीक्षा/साधना हेतु साधक की विश्राम, भोजन तथा दीक्षा/साधना सामग्री की सम्पूर्ण व्यवस्थाओं सहित प्रतिव्यक्ति कुल व्यय 11500/ रू है ।
श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा व साधना हेतु “पहले आओ-पहले पाओ” के आधार पर स्थान दिया जाता है, तथा निर्धारित संख्या पूर्ण होते ही नवीन पंजिकरण बंद कर दिए जाते हैं !
श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा महिलाओं को दीक्षा/साधना प्रदान नहीं की जाती है, यह हमारा व्यक्तिगत विषय है, अतः इस पर कोई प्रश्न न करें ।