।। प्रत्यक्ष अप्सरा साधना सत्र के प्रारम्भ होने की आगामी तिथी दिनांक 25/11/2022 है, तथा इस साधना हेतु पन्जिकरण करने कि अन्तिम तिथी दिनांक 15/11/2022 है !।।
।। इस तिथी के उपरान्त यह साधना दिनांक 24/07/2023 से प्रारम्भ होगी !।।
।। इस पृष्ठ पर लिखी गई साधना पद्धति में यज्ञ विधान अनिवार्य होने के कारण यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली सामग्री हेतु साधक द्वारा धन का व्यय किया जाता है, इसलिए यह सःशुल्क साधना है !।।
यह प्रत्यक्षिकरण साधना थोड़ी कठिन होती है, इस साधना में साधक की योग्यताओं की परम अनिवार्यता होती है ! यह पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है जिसे दक्षिणाचार, समयाचार, कौलाचार आदि पद्धतियों से चक्रार्चन, पीठार्चन, लिंगार्चन आदि विधियों से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत दीक्षा लेकर गुरु के निर्देशानुसार केवल गुरु के सानिध्य में ही संपन्न कर सकता है, इस साधना के सिद्ध हो जाने पर अभीष्ट अप्सरा द्वारा प्रत्यक्ष उपस्थित हो साधक के साथ वार्तालाप कर साधना सफल होने का सन्देश दिया जाता है, तथा भविष्य में सदैव प्रत्यक्ष रूप से साधक के स्वसम्बन्धी कार्यों में निरन्तर सहयोग व मार्गदर्शन किया जाता है । किसी भी सम्बन्ध के रूप में यह साधना सम्पन्न किये जाने पर यह साधना हानिकारक नहीं होती है, तथा पुर्णतः सात्विक, सुरक्षित व श्रेष्ठ फलदायिनी साधना होती है ।
इस साधना के लाभ :- इस साधना से साधक को साधनाकाल में अभीष्ट अप्सरा के स्पष्ट रूप में प्रत्यक्ष दर्शन व वार्तालाप होती है ! तथा भविष्य में भी अभीष्ट अप्सरा के साथ प्रत्यक्ष रूप में वार्तालाप होते रहने के साथ ही साधक की इच्छा व आवश्यकतानुसार सामाजिक, धर्म व नैतिक सीमाओं के अन्दर रहते हुए तथा अप्सरा के अधिकार क्षेत्र के अधीन अनेक प्रकार से केवल अभिनय, नृत्य, मॉडलिंग, गायन, संगीत व सभी प्रकार की ललित कलाओं के क्षेत्र में पूर्णता के साथ सफल होने की क्षमता, रंग, रूप, सौन्दर्य, उत्तम यौवन, उत्तम पौरुष शक्ति, मधुर स्वर, नाट्य अभिनय की कला, आकर्षण की क्षमता, गीत संगीत की विद्या, बहुआयामी आंतरिक क्षमताओं में वृद्धि, तथा आकर्षक व्यक्तित्व, मन के अनुकूल जीवन साथी, कार्यक्षेत्र में मन के अनुकूल अधिकारी या सहकर्मी, व्यवसायिक व सामाजिक क्षेत्र में विशेष प्रतिष्ठा व ख्याति तथा जीवन में सभी प्रकार के प्रेम सौहार्द में पूर्णता के साथ सफलता के वरदान व सहयोग की प्राप्ति होती है ! यह साधना पूर्ण रूप से केवल भौतिक साधना होती है, यह साधना आध्यात्मिक या आत्मोत्थान के मार्ग का आधार कभी नहीं होती है !
यह सात दिवसीय साधना सफल हो जाने के उपरान्त साधक जीवन में कभी भी एकांत स्थान में अभीष्ट अप्सरा को अपने सामने प्रत्यक्ष प्रकट कर उनसे वार्ता करके अपने लिए सहयोग व मार्गदर्शन ले सकता है !
यह प्रत्यक्षिकरण दीक्षा प्राप्त कर लेने के उपरान्त साधक को दीक्षा के समय प्राप्त हुए मन्त्र एवं साधना विधान के अनुसार यह अप्सरा को प्रत्यक्ष सिद्ध करने वाली यह साधना केवल हमारे निर्देशन में श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर संपन्न करने की ही अनुमति होती है ।
साधना :- केवल उर्वशी, मेनका, रम्भा, तिलोत्तमा अप्सरा में से साधक की इच्छा अथवा आवश्यकतानुसार केवल किसी एक अप्सरा की ही दीक्षा प्रदान कर साधना संपन्न कराई जा सकती है, दीक्षा के सैद्धान्तिक नियमानुसार एक बार में एक से अधिक दीक्षा नहीं ली जा सकती हैं !
अनिवार्य योग्यताएं :- यह प्रत्यक्षिकरण साधना थोड़ी कठिन होती है, इस साधना में साधक की योग्यताओं की परम अनिवार्यता होती है ! जिस प्रकार 3D फिल्म को ठीक से देखने के लिए आपकी आंखें सक्षम नहीं होती हैं और आपको चश्मा लगाना पड़ता है, ठीक इसी प्रकार से इन योनियों के 4D शरीर को देखने व समझने की क्षमता आपको स्वयं में विकसित करने के लिए साधना के प्रथम दिन से ही कुछ अनिवार्य योग्यताओं का पूर्ण होना अनिवार्य होता है ! तथा इस साधना में निम्नलिखित नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता रखने वाले सभी पुरुष साधक सम्मिलित हो सकते हैं !
- साधनाकाल में डेढ़ से दो घंटे तक बिना हिले डुले एक ही स्थिर आसन में बैठने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में एक से डेढ़ घंटे तक मन की पूर्ण एकाग्रता से रहने में अभ्यस्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से ब्रहमचर्य से युक्त रहने में सक्षम हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से वीरभाव (निर्भय व पुरुषार्थी) होना आवश्यक है !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से उत्तम प्राण ऊर्जा (उत्साह) की भावना से युक्त हो !
- साधनाकाल में कायिक वाचिक मानसिक रूप से मार्गदर्शक गुरु के प्रति आस्थावान हो !
- साधनाकाल में साधना की पूर्णता हेतु गुरु द्वारा प्रदत्त अनिवार्य निर्देशों व साधना के नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो !
- साधनाकाल के लिए अनिवार्य व्यवहारिक नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने की क्षमता से युक्त हो ! व्यवहारिक नियमों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें !
इस साधना में सम्मिलित होने के लिए उपरोक्त लिखी गई सभी “अनिवार्य योग्यताओं” का पूर्ण होना अथवा हमारे यहां से संचालित निःशुल्क साधनापूर्व प्रशिक्षण शिविर को उत्तीर्ण करना अनिवार्य है, अन्यथा दीक्षा/साधना से वंचित रखा जाता है ।
साधना अवधि :- नियमानुसार यह साधना “मन्त्र जप व यज्ञ विधान” द्वारा सात (7) दिवस तथा केवल “मन्त्र जप विधान” द्वारा इकतालीस (41) दिवस में विधिवत् सम्पन्न होती है ! किन्तु उपरोक्त “योग्यता” के लिए लिखे गए निर्देशों व साधना के नियमों में समझौतावादी, स्वेच्छाचारी साधक के लिए यह साधना अवधि अनन्त काल तक की भी हो सकती है !
उपस्थिति व पंजिकरण :- साधना हेतु साधना प्रारम्भ होने की तिथि से न्यूनतम सात दिवस पूर्व तक किया गया पंजिकरण ही मान्य होगा, तथा साधना की तिथि से एक दिवस पूर्व दोपहर तक श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर उपस्थित होना अनिवार्य है ।
अनिवार्य :- पहचान व पते की पुष्टि के लिए किसी भी वैद्य अभिलेख की एक छायाप्रति व मूलप्रति तथा लाल, पीले, श्वेत, गुलाबी या बसंती रंग की एक धोती, एक गर्म चादर व लेखन सामग्री साथ में लाना अनिवार्य है !
व्यय :- व्यय हेतु आप अपनी सुविधानुसार निम्नलिखित विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन कर सकते हैं ! सभी सज्जनों से विनम्र आग्रह है कि व्यय के लिए “विकल्प 1” का चयन करने का प्रयत्न करें ।
विकल्प 1 (स्वव्यवस्था) :- आपको अपनी दीक्षा/साधना सामग्री एवं रहन सहन की सभी व्यवस्थाएं स्वयं करने की स्वतंत्रता होती है, तथा आपको केवल 1/- रु (एक रुपया) मात्र दीक्षा/साधना की दक्षिणा के रूप में हमें देना होता है ।
विकल्प 2 (स:शुल्क) :- “मन्त्र जप व यज्ञ विधान” द्वारा सात (7) दिवसीय स:शुल्क दीक्षा/साधना हेतु साधक की विश्राम, भोजन तथा दीक्षा/साधना सामग्री की सम्पूर्ण व्यवस्थाओं सहित प्रतिव्यक्ति कुल व्यय 25500/ रू है ।
श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर दीक्षा व साधना हेतु “पहले आओ-पहले पाओ” के आधार पर स्थान दिया जाता है, तथा निर्धारित संख्या पूर्ण होते ही नवीन पंजिकरण बंद कर दिए जाते हैं !
श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा महिलाओं को दीक्षा/साधना प्रदान नहीं की जाती है, यह हमारा व्यक्तिगत विषय है, अतः इस पर कोई प्रश्न न करें ।