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श्री ज्योतिर्मणि पीठ में अष्टधातु से निर्मित भगवती महात्रिपुर सुन्दरी राजराजेश्वरी ललिताम्बा के सर्वांग स्वरूप श्रीचक्रराज श्रीयंत्र विराजमान हैं ।

श्री ज्योतिर्मणि पीठ में श्रीकुल स्वामिनी भगवती पराम्बा की पूजा, साधना की जाती है व श्रीविद्या साधना करने वाले साधकों को श्रीविद्या साधना व कुण्डलिनी, क्रियायोग साधना करने वाले साधकों को कुण्डलिनी, क्रियायोग व अन्य साधनाओं के सम्बन्ध में व्याप्त भ्रामकताओं, जटिलताओं, दुविधाओं आदि का निवारण कर साधना के विषय में उचित मार्गदर्शन देने के साथ-साथ दीक्षाएं प्रदान की जाती हैं ।

जिन सिद्धांतों से वैदिक मन्त्रों के अतिरिक्त शाबर मन्त्र, क्षेत्रीय लोकदेवताओं व अन्य आदिवासी आदि संस्कृतियों के मन्त्रों का सृजन हुआ उन्हीं सिद्धांतों के आधार पर श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा श्री यन्त्र, श्रीविद्या, संजीवनी तथा मृतसंजीवनी विद्या सहित अन्य वैदिक एवं अगमशास्त्रों के मन्त्र, तन्त्र, तथा यन्त्रों की साधना विधियों एवं प्राण ऊर्जा, मानसिक ऊर्जा, ब्रह्माण्डीय ऊर्जा पर साधना पद्धतियों तथा कुण्डलिनी व क्रियायोग आदि आध्यात्मिक विज्ञान की गहन साधनाओं के वैज्ञानिक तथा सैद्धांतिक अनुसंधान पर कार्य किये जा रहे हैं, ताकि आम जनमानस तक पहुँचाने के लिए साधनाओं को अत्यंत सहज व सरल बनाया जा सके । श्री ज्योतिर्मणि पीठ के इस प्रयास से अनेक साधनाओं को सहज, सरल व सुगम बना दिया गया है, जिससे इस सम्बंधित जिन विषयों में अनुसन्धान के परिणाम सार्थक रहे हैं , उन साधनाओं को योग्य साधकों को दीक्षित कर आम जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है ।

श्रीविद्या एवं महाविद्या दीक्षा/साधनाएं ।

यक्षिणी, अप्सरा एवं गन्धर्व दीक्षा/साधनाएं ।

शक्तिपात द्वारा अष्ट यक्षिणी साधना ।

इस साधना का विशेष लाभ :- जो साधक कठिन साधनाओं को करने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं, ऐसे साधकों के लिए यह साधना विधि अत्यन्त ही सरल पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है । जिसमें गुरु शिष्य द्वारा नवरत्न, पंचधातु व अन्य वनस्पतियों से विशेष यज्ञानुष्ठान सम्पन्न कराने के बाद शिष्य को विशेष शक्तिपात यक्षिणी दीक्षा प्रदान करता है, तथा साधना के प्रत्येक दिन विशेष शक्तिपात करके साधना सम्पन्न कराता है । इस कारण से यक्षिणियों को सिद्ध करने की यह सबसे सरल विधि है । जिस कारण से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत शक्तिपात दीक्षा लेकर गुरु के सानिध्य में इस साधना को आसानी से संपन्न कर सकता है

प्रत्यक्ष यक्षिणी साधना ।

यह प्रत्यक्षिकरण साधना थोड़ी कठिन होती है, इस साधना में साधक की योग्यताओं की परम अनिवार्यता होती है ! यह पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है जिसे दक्षिणाचार, समयाचार, कौलाचार आदि पद्धतियों से चक्रार्चन, पीठार्चन, लिंगार्चन आदि विधियों से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत दीक्षा लेकर गुरु के निर्देशानुसार केवल गुरु के सानिध्य में ही संपन्न कर सकता है, इस साधना के सिद्ध हो जाने पर अभीष्ट यक्षिणी द्वारा प्रत्यक्ष उपस्थित हो साधक के साथ वार्तालाप कर साधना सफल होने का सन्देश दिया जाता है, तथा भविष्य में सदैव प्रत्यक्ष रूप से साधक के स्वसम्बन्धी कार्यों में निरन्तर सहयोग व मार्गदर्शन किया जाता है । पत्नी व प्रेमिका के रूप में यह साधना सम्पन्न किये जाने पर हानिकारक तथा माता व बहन के रूप में यह साधना किये जाने पर पुर्णतः सात्विक, सुरक्षित व आर्थिक संसाधनों की प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ फलदायिनी साधना होती है ।

शक्तिपात द्वारा अप्सरा साधना ।

इस साधना का विशेष लाभ :- जो साधक कठिन साधनाओं को करने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं, ऐसे साधकों के लिए यह साधना विधि अत्यन्त ही सरल पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है । जिसमें गुरु शिष्य द्वारा नवरत्न, पंचधातु व अन्य वनस्पतियों से विशेष यज्ञानुष्ठान सम्पन्न करने के बाद शिष्य को विशेष शक्तिपात अप्सरा दीक्षा प्रदान करता है, तथा साधना के प्रत्येक दिन विशेष शक्तिपात करके साधना सम्पन्न कराता है । इस कारण से अप्सराओं को सिद्ध करने की यह सबसे सरल विधि है । जिस कारण से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत शक्तिपात दीक्षा लेकर गुरु के सानिध्य में इस साधना को आसानी से संपन्न कर सकता है, इस साधना के सिद्ध हो जाने पर साधनाकाल में अभीष्ट अप्सरा द्वारा अपनी उपस्थिति का आभास करा दिया जाता है ।

प्रत्यक्ष अप्सरा साधना ।

इस साधना से साधक को साधनाकाल में अभीष्ट अप्सरा के स्पष्ट रूप में प्रत्यक्ष दर्शन व वार्तालाप होती है ! तथा भविष्य में भी अभीष्ट अप्सरा के साथ प्रत्यक्ष रूप में वार्तालाप होते रहने के साथ ही साधक की इच्छा व आवश्यकतानुसार सामाजिक, धर्म व नैतिक सीमाओं के अन्दर रहते हुए तथा अप्सरा के अधिकार क्षेत्र के अधीन अनेक प्रकार से केवल अभिनय, नृत्य, मॉडलिंग, गायन, संगीत व सभी प्रकार की ललित कलाओं के क्षेत्र में पूर्णता के साथ सफल होने की क्षमता, रंग, रूप, सौन्दर्य, उत्तम यौवन, उत्तम पौरुष शक्ति, मधुर स्वर, नाट्य अभिनय की कला, आकर्षण की क्षमता, गीत संगीत की विद्या, बहुआयामी आंतरिक क्षमताओं में वृद्धि, तथा आकर्षक व्यक्तित्व, मन के अनुकूल जीवन साथी, कार्यक्षेत्र में मन के अनुकूल अधिकारी या सहकर्मी, व्यवसायिक व सामाजिक क्षेत्र में विशेष प्रतिष्ठा व ख्याति तथा जीवन में सभी प्रकार के प्रेम सौहार्द में पूर्णता के साथ सफलता के

शक्तिपात द्वारा गन्धर्व साधना ।

इस साधना का विशेष लाभ :- जो साधक कठिन साधनाओं को करने के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं, ऐसे साधकों के लिए यह साधना विधि अत्यन्त ही सरल पुर्णतः सात्विक व सुरक्षित साधना होती है । जिसमें गुरु शिष्य द्वारा नवरत्न, पंचधातु व अन्य वनस्पतियों से विशेष यज्ञानुष्ठान सम्पन्न करने के बाद शिष्य को विशेष शक्तिपात गन्धर्व दीक्षा प्रदान करता है, तथा साधना के प्रत्येक दिन विशेष शक्तिपात करके साधना सम्पन्न कराता है । इस कारण से गन्धर्वों को सिद्ध करने की यह सबसे सरल विधि है । जिस कारण से कोई भी साधक सक्षम गुरु से विधिवत शक्तिपात दीक्षा लेकर गुरु के सानिध्य में इस साधना को आसानी से संपन्न कर सकता है, इस साधना के सिद्ध हो जाने पर साधनाकाल में अभीष्ट गन्धर्व द्वारा अपनी उपस्थिति का आभास करा दिया जाता है ।

प्रत्यक्ष गन्धर्व साधना ।

इस साधना का विशेष लाभ :- इस साधना से साधक को साधनाकाल में अभीष्ट गन्धर्व के स्पष्ट रूप में प्रत्यक्ष दर्शन व वार्तालाप होती है ! तथा भविष्य में भी अभीष्ट गन्धर्व के साथ प्रत्यक्ष रूप में वार्तालाप होते रहने के साथ ही साधक की इच्छा व आवश्यकतानुसार सामाजिक, धर्म व नैतिक सीमाओं के अन्दर रहते हुए तथा गन्धर्व के अधिकार क्षेत्र के अधीन अनेक प्रकार से केवल अभिनय, नृत्य, मॉडलिंग, गायन, संगीत व सभी प्रकार की ललित कलाओं के क्षेत्र में पूर्णता के साथ सफल होने की क्षमता, उत्तम यौवन, उत्तम पौरुष शक्ति, मधुर स्वर, नाट्य अभिनय की कला, गीत संगीत की विद्या, बहुआयामी आंतरिक क्षमताओं में वृद्धि में पूर्णता के साथ सफलता के वरदान व सहयोग की प्राप्ति होती है ! यह साधना पूर्ण रूप से केवल भौतिक साधना होती है, यह साधना आध्यात्मिक या आत्मोत्थान के मार्ग का आधार कभी नहीं होती है !

प्रत्यक्ष पद्मावती यक्षिणी तीव्र सिद्धि अनुष्ठान ।

इस अनुष्ठान के अन्त में पद्मावती (पद्मिनी) यक्षिणी अपने साधक को प्रत्यक्ष दर्शन व आजीवन सहयोग करने का वचन देकर अन्तर्ध्यान हो जाती है !

प्रत्यक्ष उर्वशी व रम्भा अप्सरा तीव्र सिद्धि अनुष्ठान ।

इस अनुष्ठान के अन्त में उर्वशी अथवा रम्भा अप्सरा अपने साधक को प्रत्यक्ष दर्शन व आजीवन सहयोग करने का वचन देकर अन्तर्ध्यान हो जाती है !

प्रत्यक्ष गन्धर्वराज चित्ररथ तीव्र सिद्धि अनुष्ठान ।

इस अनुष्ठान के अन्त में गन्धर्वराज चित्ररथ अपने साधक को प्रत्यक्ष दर्शन व आजीवन सहयोग करने का वचन देकर अन्तर्ध्यान हो जाते हैं !

श्री सिद्ध भैरवी चक्र साधना ।

श्री सिद्ध भैरवी चक्र की साधना को विधिवत् संपन्न करके सिद्ध भैरवी चक्र के रहस्य को जान लेने वाला गृहस्थ साधक इस के परिणाम स्वरूप अपने जीवन व इस सृष्टि के समस्त रहस्यों को जान लेता है, तथा अनाहक ही असंख्य शक्तियों एवं सिद्धियों ब्रह्मविद्या व श्रीविद्या जैसी सर्वोच्च विद्याओं को प्राप्त कर स्थिर चित्त व पूर्ण ब्रह्मवेत्ता बन जाता है ! ऐसा साधक अपने जीवन में समस्त गुह्य विद्याओं, गुह्य तन्त्र, अर्थ, काम, धन, धान्य, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य, विद्या सहित समस्त भौतिक सुख, सौभाग्य, यश, समृद्धि व सर्वैश्वर्यों को भोगते हुए सर्वोत्तम जीवन जीता है !

विशेष श्रीचक्र (श्रीयन्त्र) साधना ।

धर्म, अर्थ व काम पांच पुरुषार्थों की प्राप्ति व श्रीविद्या के श्रीचक्र मण्डल की सभी देवीयों की समग्र उपासना हेतु यह दीक्षा लेकर विधिवत् साधना संपन्न करने से साधक को धर्म, अर्थ व काम इन पांच पुरुषार्थों की क्रमशः प्राप्ति होती है, तथा इस सर्वोच्च शक्ति के चक्र का साधक इस सर्वोच्च साधना के परिणाम स्वरूप समस्त धन, धान्य, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य, विद्या सहित समस्त भौतिक सर्वैश्वर्यों व राजसुख, शासन सत्ता आदि को भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त कर “सकता” है !

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